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चरकसंहिता-भा० टी०॥ तुर्विधोपयोगःपानाशनभक्ष्यलेह्योपयोगात्।षडास्वादोरसभे दतःपविधत्वाविंशतिगुणोगुरुलघुशीतोष्णस्निग्धरूक्षमन्दतीक्ष्णस्थिरसरमृदुकठिनविशदपिच्छिलश्लक्ष्णखरसक्ष्मस्थूलसान्द्रद्रवानुगमनात् ॥ ३३॥ वह ऐसा है कि अर्थमात्रमें भेद न होनेसे सब प्रकारके आहारोंमें ही आहारत्व है । स्थावर और जंगम भेदसे माहारकी उत्पत्ति दो प्रकारकी है । हितकर और अहितकर इन दो भेदोंसे आहार दो प्रकारका है । पान, भोजन, चर्वण और लेहन इन भेदांसे आहारका सेवन चार प्रकारका है । रसभेदसे आहारका स्वाद ६ प्रकारका है । गुरु, लघु, शीतल, उष्ण, चिकना, रूक्ष, मंद, तीक्ष्ण, स्थिर, सर, मृदु, काटन, विषद, पिच्छिल, श्लक्ष्ण, खर, सूक्ष्म, स्थूल, घन और द्रव इन भेदोसे. आहारके गुण वीस प्रकारके हैं ॥ ३३ ॥
अपरिसंख्येयविकल्पोद्रव्यसंयोगकरणवाहुल्यात्तस्यययेविकारावयवाभायष्टमुपयुज्यन्तोभूयिष्ठकल्पनाश्चमनुष्याणांप्रकृत्यैवहिततमाश्चाहिततमाश्चतांस्तान्यथावदनुव्याख्यास्यामः ॥३४॥ द्रव्यांके संयोगवशसे आहारकी कल्पना असंख्य प्रकारकी है । मनुष्योंके वह आहार असंख्य प्रकारके होते हुए हितकर और अहितकर दो प्रकारोंमें विभक्त हैं। उनका अव वर्णन करतह ॥ ३४ ॥
श्रेष्ठहितकारी द्रव्यांका वर्णन । तद्यथालोहितशालय शूकधान्यानांपथ्यतमत्वेश्रेष्टतमाः । मु. द्वादशमीधान्यानाम्, आन्तरीक्ष्यमुदकानां, सैन्धवंलवणानां, जीवन्तीशाकंशाकानाम् । ऐणेयंमृगमांसानां, लावःपक्षिणां, गोधारिलेशयानां, रोहितोमत्स्यानां, गव्यंलार्पःसार्पपां; गोक्षीरक्षीराणां, तिलतैलंस्थावरजातानांस्नेहानां, वराहवसाअनृपमृगवसानां,चुलुकीवसामत्स्यवसानां,हंसवसाजलचरविहगवलानां, कुकुटवसाविष्किरशकुनिवसानामाजमेदः शाखादमंदसा, शुगवरंकन्दानां, मृद्वीकाफलानां, शर्कराइक्षुविकाराणाम् । इतिप्रत्यवाहिततमानामाहारविकाराणां प्राधान्यतोद्रव्याणिव्याख्यातानि ॥ ३५॥