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चरकसंहिता-मा० टी०।
द्वाविंशोऽध्यायः।
अथातोलंघनवृहणीयमध्यायव्याख्यास्याम इतिहस्माहभग वानात्रेयः। अव हम लंघनवृहणीय नामक अध्यायकी व्याख्या करतेहैं । ऐसा भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे। तपस्वाध्यायनिरतानात्रेयःशिष्यसत्तमान् । षडग्निवेशप्रमुखानुक्तवान्पारचोदयन् ॥ १॥ लंघनवृंहणंकालेरूक्षणस्नेहनंतथा । स्वेदनस्तम्भनञ्चैवजानीतेयःसवैभिषक् ॥ २॥ तप और स्वाध्यायपरायण अग्निवेश आदि अपने ६ शिष्यों को सम्बोधन करके महात्मा आत्रेयजी कहने लगे कि जो वैद्य समयानुसार लंघन, बृहण, रूक्षण, स्नेहन, स्वेदन एवं स्तम्भन इन छहाँका प्रयोग करना जानताहै उसको ही यथार्थ वैद्य कहतेहैं, अन्य वैद्य नहीं कहाजाता ॥ १ ॥२॥
अग्निवेशका प्रश्न । इतितमेवमुक्तवन्तंभगवन्तमात्रेयमग्निवेशउवाच । भगवल्लंधनंकिंस्विल्लंघनीयाश्चकीदृशाः। बृहणं बृहणीयाश्चरूक्षणीयाश्चरूक्षणम् ॥ ३॥ स्नेहनंस्नेहनीयाश्चस्वेदाःस्वेद्याश्चकमताः। स्तम्भनस्तम्भनीयाश्चवक्तुमर्हसितद्गुरो ॥ ४ ॥ लंघनप्रभृतीनाञ्चपण्णामेपांसमासतः । रुताकृतातिवृत्तानांलक्षणं वक्तुमर्हसि ॥ ५॥ इस प्रकार कहते हुए भगवान् आत्रेयजीसे महात्मा अग्निवेश कहने लगे कि हे भगवन ! लंघन किसको कहतेहैं और वह लंघन कैसे मनुष्योंको कराया जाता है। बृहण किसको कहतेहैं और वह कैसे मनुष्यांको कराया जाता है । रूक्षण क्या वस्तु है और कान २ मनुप्य रूक्षणके योग्य है एवम् स्नेहन किसको कहतहें और किन मनुप्पोको कराना चाहिये । हे गुरो ! स्तम्भन क्या है और किनको कगना चाहिये। इनायक विषयमें कृपया कयन कीजिये तथा संक्षेपसे लंघन आदि व्हांका योग, अयोग, अतिपोगके लक्षणांका भी वर्णन कभिये ॥ ३ ॥४॥५