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चरकसंहिता-भा० टी०॥
निद्राजनक योग। देहवृत्तौयथाहारःतथास्वप्नःसुखोमतः । स्वाप्नाहारसमुत्थेच स्थौल्यकाश्यविशेषतः ॥ ५१ ॥ अभ्यङ्गोत्सादनंस्नानंग्राम्यानूपौदकारसाः । शाल्यनंसदधिक्षीरस्नेहोमद्यमनःसुखम्म् ॥ ५२ ॥ मनसोऽनुगुणागन्धाःशब्दाःसंवाहनानिच । चक्षुपस्तर्पणलेपः शिरसोवदनस्यच ॥ ५३ ॥ स्वास्तीर्णशयनंवे. श्मसुखंकालस्तथोचितः । आनयन्त्यचिरान्निद्रांप्रनष्टायानि- .. मित्ततः ॥ ५४॥
शरीरवृत्तिके निर्वाहके लिये जैसे आहार उपयोगीहै वैसे ही निद्रा भी परम उपयोगी है इस लिये प्रायः स्थूलता और कृशता यह दोनों निद्रा और आहारके अधीनही है ॥ ०१॥ यदि किसी कारणसे मनुष्यकी निद्राका नाश होगया हो तो अभ्यंग, उद्धर्तन, स्नान और ग्राम्य तथा जलचारी जीवोंके मांसका रस, शालि चावल, दही, दूध, स्नेह, मद्य और मनको सुख देनेवाले कर्म और मनको हरनेवाली सुगंधि तथा प्यारे प्यारे शब्द और देहका मसलना तथा दवाना, नेत्रोंका सन्तर्पण और मस्तक पर सुगंधित लेप तथा शिरके ऊपर पानीकी धारा देना सुखकारक शय्या, समयोचित घरका सुख यह सव शीघ्र निद्राके लानेवाले हैं॥ ५२ ॥ ५३॥५४॥
निद्रा न आनेके हेतु । कायस्यशिरसश्चैवविरेकश्छर्दनंभयम् । चिंताक्रोधस्तथाधूमो व्यायामो रक्तमोक्षणम् ॥ ५५॥ उपवासोसुखाशय्यासत्त्वौदाय्यतमोजयःनिद्राप्रसङ्गमहितवारयन्तिसमुत्थितम्॥५६॥ पतएवचविज्ञयानिद्रानाशस्यहेतवः । कार्यकालोविकारश्च प्रकतिर्वायुरेवच ॥१७॥ झिरका और शारीरफा विरंचन, सर्दी, भय, चिन्ता. क्रोध, धूम,परिश्रम,रक्तमा अण, उपवास, खगव दशव्या, सत्वगुणकी अधिकता तमोगुणकी क्षीणता इन सवत प्रान र निद्रा भी नष्ट होजातहि ॥ ५५ ॥ १६ ॥ कार्य, काल, रोग,स्वभाव पार गाय या पांच ही मुक्ष्म रूपसे तया स्थल रूपसे भी निद्रानाशक कारण
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