________________
(२५४)
चरकसंहिता-भा० टी०। वल, पुष्टि,दृढता, अकृशता ये सव लक्षण बृंहणके होतेहैं । अत्यन्त बृहण होनेसे शरीरम स्यूलता बढनातीहै ।। ३५॥ जैसे लंघनके योग और अयोगसे लक्षण होते, सेही रूक्षणके योग और मिथ्यायोगसे भी जानने । यथोक्त रोगोंके उपद्रवोंको स्तम्भन दारा जीतकर शरीरमें वल प्राप्त होय तो उत्तम स्तम्भन हुआ जानो॥३६॥ यति स्तम्भन होनेसे शरीरका रंग काला पडजाताहै और गात्रस्तम्भ, उदेग और हनुस्तम्भ, हृदयका उपरोध एवम् मलबद्धता उत्पन्न होजातीहै ॥ ३७॥
लक्षणंचकृतानांस्यात्पण्णामेषांसमासतः । तदोषधीनांव्या- . धीनामशमोवृद्धिरेववा ॥ ३८ ॥ इतिषसर्वरोगाणांप्रोकाः सम्यगुपक्रमाः । साध्यानांसाधनेसिद्धामानाकालानुरोधिन इति ॥ ३९ ॥ इस प्रकार लंबनादिप्रकारके उपयोग होनेसे जो लक्षण होतेहैं उनकी औषधि और धातुओंकी अशान्ति और वृद्धि यह सब कह चुके हैं। इस ६ प्रकारकी चिकिसा द्वारा मनुष्य सव रोगोंको जीत सकता है, परन्तु यह सब मात्रा, काल आदि विचारकर प्रयोग करनेसे सव साध्यरोगोंको नष्ट कर देतेहैं ॥ ३८ ॥ ३९ ॥
भवति चात्र। दोपाणांवहुसंसर्गात्संकीर्य्यन्तेापक्रमाः। षट्वंतुनातिवर्तन्तेत्रित्वंवातादयोयथा ॥४०॥ इत्यस्मिल्लंघनाध्यायेव्याख्याताःपडुपक्रमाः । यथाप्रश्नंभगवताचिकित्सायैःप्रवर्तिता॥४१॥ इति योजनाचतुष्कलंघनवृहणीयो नाम द्वाविं
शोऽध्यायः समाप्तः। पात, पित्त, कफके बहुत से प्रकार मिश्रित चिकित्सासे नष्ट करनेयोग्य हैं । जैसे वात, पिच, कफ इन तीन दोपोंके सिवाय और कोई दूषित करनेवाला नहीं है ऐसे ही लंबन प्रभृति ६चिकित्सा भी इन वातादिको मिश्रित और पृथक दोषोंको दूर फरने में परमोपयोगी इस प्रकार भगगन पुनसजीने अनिवेशके प्रश्नोंका उत्तर देते इस लंघनंबृहणीयाध्याय ६ प्रकारकी चिकित्साका वर्णन कियाहै॥१०॥४॥ मरिचरफ० पं० रामप्रमादयभापाटीमा योजन चतुप्फे लंपनवाणीयो
नाम शादिऽध्यायः॥२२॥