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चरकसंहिता-भा० टी०। ... : प्रत्यक्षपूर्वक तीन प्रकारका अनुमान होताहै । कार्य लिङ्गानुमान,कारण लिङ्गानुमान, कार्यकारण लिङ्गानुमान; अथवा यों कहिये पूर्ववत्, शेषवत्, सामान्यतोसृष्ट, यह तीनप्रकारका अनुमान अतीत,. अनागत, वर्तमान, इन तीन कालोंके ज्ञानका बोधक होताहै । जैसे धूमके दर्शनसे अग्निका बोध होजाना यह वर्तमान कालिक अनुमान है । गर्भवतीको देखकर यह बोध होना इसने पहले मैथुन किया? यह अतीतकालिंक अनुमान है।बीजोंको देखकर यह बोध होना कि इनसे ऐसे फल होंगे यह भावष्यत्कालिक अनुमान है अथवा यों कहिये इन बीजोंसे ऐसे फल होंगे और ऐसे फलोंसे ही यह बीज हुए इसको कार्यकारणानुमान कहते हैं ॥१९॥२०॥
... युक्तिका लक्षण । . .. जलकर्षणबीज संयोगाच्छस्यसंभवः । युक्तिःषधातुसंयोगागर्भाणांसम्भवस्तथा ॥ २१ ॥ मथ्यमन्थनमन्थानसंयोगादग्निसम्भवः । युक्तियुक्ताचतुष्पादसम्पयाधिनिबर्हणी। ॥ २२ ॥ बुद्धिःपश्यतियाभावान्बहुकारणयोगजान् । युक्ति... स्त्रिकालासाज्ञेयात्रिवर्ग:साध्यतेयया ॥२३॥
युक्तिके लक्षण जैसे-जल, खेत, बीज, ऋतु, इन चारोंके योगसे शस्य (अन्नकी खेती) उत्पन्न होतीहै । ऐसे ही पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, और आत्माके योगसे गर्भ उत्पन्न होताहै । और जैसे मंथ और मंथन (यज्ञमें घिसकर अग्नि पैदा करनेकी दोनों लकडियोंको मंथ और मंथन. कहतेहैं ) तथा मंथनकर्ता, इनके संयोगसे अग्निकी उत्पत्ति होतीहै इसी प्रकार चतुष्पादसम्पन्न चिकित्सासे व्याधि भी नष्ट होजातीहै । इसप्रकार जो बुद्धि अनेक कारणोंसे पैदाहुए अनेक भावोंको देखने में समर्थ होतीहै उसीको युक्ति कहतेहैं यह युक्ति भूत, भविष्यंत, वर्तमान, इन तीन कालोंमें ही व्यापक होनेवाली है। इसीके द्वारा धर्म अर्थ काम की सिदि होती है ॥ २१ ॥ २२ ॥ २३ ॥ . - एषापरीक्षानास्त्यन्याययासर्वपरीक्ष्यते। ..........
परीक्ष्यंसदसच्चैवतयाचास्तिपुनर्भवः ॥ २४॥ सम्पूर्ण सत् और असत्के जानने के लिये यह चार प्रकारकी परीक्षा है अर्थात यह चार प्रमाण हैं । इन चारोंसे अधिक परीक्षा अर्थात् पाँचवां कोई प्रमाण नहीं यद्यपि. कोई२ अर्थापत्ति अनुपलब्धि आदि अन्य प्रमाणभी,मानतेहैं परंतु अनुमान और युक्तिके अंतर्गत अर्थापत्ति आदिके आजानेसे इन चारोंसे अन्य प्रमाण कल्पना
होती है लाम ही व्यापक
होते हैं यह युक्ति भए अनेक भा