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सूत्रस्थीन-अ० १३.. (६) • स्नेहकर्मके योग्य पुरुष। . . . स्वेद्या शोधयितव्याश्चरूक्षवातविकारिणः। . . . .
व्यायाममद्यस्त्रीनित्याःस्नेह्याम्स्युर्येचचिन्तकाः ॥ ५ ॥ सूक्ष मनुष्य, वायुकी अधिकतावाला जिनको स्वेदन तथा शोधन कराना हो एवं कसरत करनेवाले, मद्यपान करनेवाले, नित्य स्त्रीगमन करनेवाले, और जिनको शोचने विचारनेका काम अधिक रहता हो वह मनुष्य स्नेहन करने योग्य हैं ॥५०॥
स्नेहकर्मके अयोग्य व्यक्ति । संशोधनाहतेयेषांरूक्षणसंप्रवक्ष्यते । नतेषांस्नेहनंशस्तमुत्सनकफमेदसाम्॥५१॥अभिष्यन्दाननगुदानित्यमन्दाग्नयश्चये। तृषामूपिरीताश्चंगार्भण्यस्तालुशोषिणः ॥ ५२ ॥ अन्नद्वि
षश्छर्दयन्तोजठरामगरार्दिताः । दुर्बलाश्चप्रतान्ताश्चस्नेह... ग्लानामदातुराः॥५३॥ नस्नेह्यावर्त्तमानषुननस्तावस्तिक
र्मसु । स्नेहपानात्प्रजायन्तेतेषांरोगासुदारुणाः ॥ ५४॥ जिन मनुष्यों को संशोधन नहीं करना और रूक्षण करना है अर्थात् जो मनुष्य रूक्षण करनेके योग्य हैं उनको स्नेहपान कराना हितकर नहीं है। कफप्रकृतिवालेको
और मेवालेको भी स्नेहन नहीं करना । एवं जिनके मुखसे और गुदासे वाव होताहै, जो मंदाग्निवाले हों, तृष्णा तथा मूळयुक्त हों,जो गर्भवती हों उनको तथा तालुशोषमें, अरुचिमें, वमनमें, उदररोगमें, आमदोष तथा गरदोषमेंदुर्बल, बहुत कृश, स्नेहपानसे ग्लानि माननेवालेको, मदात्ययवालेको, नस्यकर्म कियेहुएको, बस्तिकर्म कियेहुएको स्नेहपान करना उचित नहीं । याद इनको स्नेहपान करावे तो दारुण रोग उत्पन्न होजातेहैं ॥ ११॥ ५२ ॥ ५३ ॥ ५४॥
. अस्निग्धके लक्षण। पुरीषंग्रथितंरूकंवायुरप्रगणोमृदुः।
पक्ताखरत्वंरौक्ष्यश्चगात्रस्यास्निग्धलक्षणम् ॥ ५५॥ स्नहन न होनेके यह लक्षण होतेहैं। जैसे-मलकागांठदार और रूक्ष होना,वायुका विलोम होना, आग्निका मंद होना, पाचक, देह कठोर और रूक्ष होना ॥ १६॥
सम्यक् स्निग्धके लक्षण। वातानुलोम्यंदीप्तोनिर्वास्निग्धमसंहतम्। माईवस्निग्धताचाङ्गेस्निग्धानामुपजायते ॥ ५६ ॥