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चरकसंहिता-भाटी। . जिसके वायु कुपित होकर प्लीहा (तिल्ली) में प्रवेश कर उसको ऊंची करदेवें वह प्लीहा धीरे २ पीडाके साथ वढजाती है (यह प्लीहशोथ कहाजाताहै ) ॥२६ ।।
गुल्मका कारण ॥ यस्यवायुःप्रकुपितोगुल्मस्थानेचतिष्ठति।
शोथंसशूलञ्जनयन्गुल्मस्तस्योपजायते ॥ २७॥ कुपित वायु जिसके गुल्मस्थानमें प्रवेश करताहै उसके पीडाके साथ गुल्मरूपी शोयको पैदा करदेताहै ॥ २७ ॥
ब्रनका कारण। यस्यवायुःप्रकुपितःशोथशूलकरश्चरन् ।
वक्षणावृषणोयातिव्रतस्योपजायते ॥ २८॥ जिसके वायु कुपित होकर पीडायुक्त शोथवंक्षण(जंघाके मूल) में पेडसे अंडकोशकी ओरको उत्पन्न करे उस शोथको न कहतहे ॥ २८ ॥
उदरका लक्षण । यस्यवातःप्रकुपितस्त्वङ्मासान्तरमाश्रितः।
शोथसञ्जनयन्कुक्षावदरंतस्यजायते ॥ २९॥ कुपित वायु जिसके कुक्षिस्यानकी त्वचा और मांसमं मिल पेटको मजा देताहै उस शोथको शोथोदर कहतेहे ॥ २९ ॥
अनाहका कारण। यस्यवातःप्रकुपितःकुक्षिमाश्रित्यतिष्ठति ।
नाधोनजतिनाप्यूद्धञ्चानाहस्तस्यजायते ॥ ३०॥ शुद्ध वायु जिसकी कुक्षिम स्थित होकर न नीचे गमन करे न ऊपर जावे इस चायुके अवगेधको अफारा कहतेह ॥ ३०॥
रोगाश्चोत्सेधसामान्यादधिमांसाव॑दादयः ।
विशिष्टानामरूपाभ्यांनिर्देश्याःशोथसंग्रह ॥३१॥ अधिमांस और अबुंदादिक नाम रूप करके शोथसे अलग होनेपर भी उटन: वाटे. सामान्पधर्भसे शोयाम ही गणना करने चाहिये ॥ ३१॥
रोहिणीका कारण । वातपित्तकफायस्ययुगपत्कुपितास्त्रयः। जिह्वामूलेऽवतिष्टन्तविदहन्तःसमुच्छ्रिताः ॥ ३२ ॥