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सूत्रस्थान-अ०२०
(२२९) वस्ति, मलस्थान, कमर, नितंब, दोनों पांव, हड्डी यह वायुके स्थान हैं । इनमें भी पक्षाशय विशेषतासे वातका स्थान है ॥ ६ ॥ स्वेद,रस, लसीका, रक्त और आमाशय यह पित्तके स्थान हैं । इनमें भी आमाशय, विशेषतासे पित्तका स्थान है। इस जगह आमाशय शब्दसे आमाशयांशभूत ग्रहणी समझना ॥७॥ उरास्थल मस्तक, गर्दन, पर्व, आमाशय, और मेद यह कफके स्थान हैं। इनमें भी उरस्थल (छाती) विशेषतासे कफका स्थान है ॥ ८॥
सर्वशरीरचारास्तुवातपितश्लेष्माणोहिसर्वस्मिन्छरीरकुपिताकुपिताःशुभाशुभानिकुर्वन्ति। प्रकृतिभूताःशुभानि, उपचयबलवर्णप्रसादादीनि । अशुभानिपुनःविकृतिमापन्नानिविकारसंज्ञकानि । तत्रविकाराःसामान्यजानानात्मजाश्चतत्रसामान्यजाःपूर्वमष्टोदरीयेव्याख्याताः। नानात्मजास्त्विहाध्यायेऽनुव्याख्यास्यामः ॥९॥ संपूर्ण शरीरमें वात,पित्त, कफ, यह तीनों विचरतेहैं और कुपित या अकुपित हुए सर्वशरीरमें शुभ तथा अशुभको करतेहैं । यदि यह वातादि प्रकृतिस्थ हों तो शरीरमें पुष्टि, बल, वर्ण, प्रसन्नता आदि शुभलक्षणोंको करतेहैं और विकृत होनसे अनेक प्रकारके विकारोंको करतेहैं । इन दोषोंका विकृत होना ही विकार कहाजाताहै । वह विकार सामान्यज और नानात्मज इन भेदोंसे दो प्रकारके हैं । सामान्यज विकार अष्टोदरीय अध्यायमें कह चुके हैं और नानात्मज विकारोंको इस अध्यायमें कथन करतेहैं ॥९॥
तद्यथा-अशीतिर्वातविकाराःचत्वारिंशत्पित्तविकाराविंशतिः श्लेष्मविकाराः ॥१०॥ वह इस प्रकार हैं जैसे ८० प्रकारके वातविकार हैं । ४० प्रकारके पित्तविकार हैं और बीस २० प्रकारके कफके विकार होतेहैं ॥ १० ॥
तत्रादौवावविकाराननुव्याख्यास्यामः । तद्यथा-नखभेदश्च, विपादिकाच, पादशूलञ्च, पादनंशश्च, सुप्तपादताच, वातखुडताच, गुल्फग्रहश्च,पिण्डिकाद्वेष्टनञ्च, गृध्रसीच,जानुभेदश्च, जानुविश्लषश्च, ऊरुस्तम्भश्च, ऊरुसादश्च, पागुल्यञ्च,गुदभ्रंशश्च, गुदार्तिश्च, वृषणोत्क्षेपश्च, शेफस्तम्भश्च, वंक्षणाना