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सूत्रस्थान-अ०.२०.
(२३६) रहना, वलास, हृदयका लिहसा सा रहना, धमनियों में स्थूलता, गलगंड, आतिस्थू. लता, मंदाग्नि, उदर्द, सफेद वर्ण होना, मूत्र, नेत्र और पुरीषका सफेद होना, यह बीसप्रकारके कफके विकार हैं ॥ २१ ॥ श्लेष्मविकाराणामपरिसंख्येयानाभाविष्कृततमाख्याताल
वपितुखल्वेतेषुश्लेष्मविकारेष्वन्येषुचानुक्तेषुश्लेष्मणइदमा- . त्मरूपमपरिणामिकर्मणश्चस्वलक्षणयदुपलभ्यतदवयववावि
मुक्तसन्देहाश्लेष्मविकारमध्यवस्यन्तिकुशलाः ॥ २२॥ . यद्यपि कफसे विकार असंख्य होसकेतहैं परंतु उनमें जो मुख्य बीस विकार हैं यहां उनका कथन कियाहै । इन सब विकारों में जो यहां कथन कियेहैं और जो कथन नहीं किये गये इन सबमें कफके धर्म और लक्षणोंको और कफकी विकृतावस्थाके कर्मोंको विचारकर कुशल वैद्य कफके विकारोंका निश्चय करे ॥२२॥
तद्यथा-श्वैत्यशैत्यगौरवमाधुर्यमात्सर्याणिश्लेष्मणआत्मरूपाण्येवंविधत्वाच्चकर्मणःस्वलक्षणमिदमस्यभवति । तंतंशरीरावयवमाविशतः श्वैत्यशैत्यकंडूस्थैर्यगौरवस्नेहस्तम्भसुप्तिक्लेदोपदेहबन्धमाधुर्यचिरकारिवानिश्लेष्मणःकर्माणितै
रान्वितश्लेष्मविकारमेवाध्यवस्येत् ॥ २३ ॥ वह कफात्मक धर्म इसप्रकार है । जैसे वैत्य शैत्य, गौख, माधुर्य,मात्सर्य, यह. कफके आत्मरूप हैं । और इस ही प्रकारके इसके कर्म और लक्षण होतेहैं । यह जब जिसरशरीरके अवयवमें प्रवेश करताहै उसमें श्वेतता, शीतता, खाज, स्थिरता, भारीपन, स्निग्धता, स्तंभ, सुप्ति, क्लम, क्लेद, उपलेप, बंध,माधुर्य, चिरकारीपन इन अपने कर्म लक्षणोंको दिखाताहै । इन लक्षणोंयुक्त विकारोंको कफके विकार जाने ॥ २३ ॥
श्लेष्मविकारकी चिकित्सा। तंकटुकतिक्तकषायतीक्ष्णोष्णरूक्षरुपक्रमैरुपक्रमेतस्वेदनवमनशिरोविरेचनव्यायामादिभिःश्लेष्महरैर्मात्रांकालञ्चप्रमाणी
कृत्य । वमनन्तुसवोपक्रमेभ्यःश्लेष्मणिप्रधानतमंमन्यन्तेभि...षजः ॥ २४॥ तद्धयादितएवामाशयमनुप्रविश्यकेवलंवैकारकंश्लेष्ममूलमपकर्षति । तत्रावजितेश्लेष्मण्यपिशरीरान्तर्ग