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(२३८) चरकसंहिता-भा० टी०। रपर रोम विलकुल न हों, अत्यंत काला, बहुत गोरा, और अतिस्थूल, एवं अति कृश, यह आठ प्रकारके शरीर निंदाके योग्य हैं ॥ १ ॥
आतिस्थूलमें आठ अवगुण । तत्रातिस्थूलकृशयोर्भूयएवापरेनिन्दितविशेषाभवान्त । अति. स्थूलस्यतावदायुपोह्रासःजरोपरोधःकृच्छ्रव्यवायतादौर्बल्यदौर्ग
न्ध्यस्वेदावाधःक्षुदतिमात्रपिपासातियोगश्चेतिभवन्त्यष्टौदोषाः२ इन आठोम, अधिकमोटा,एवं अधिककृश,विशष निंदाके योग्य होतेहैं,क्योंकि अधिक मोटा हानस आयुका हास होताहै और बुढापा शीघ्र ही आजाताहै तथा शरीरके सूक्ष्म छिद्र रुक जाते हैं । एवं स्त्रीसंगमें कष्ट, दुर्वलता, शरीरमें दुर्गन्धि, पसीना, अधिक क्षुधा, अधिक प्यास यह आठ दोष होतेहैं । इसलिये बहुत मोटा शरीर निंदनीय होताहै ॥ २॥
___आत स्थूलताका कारण। तदतिस्थौल्यमतिसंपूरणाद्गुरुमधुरशीतस्निग्धोपयोगादव्यायामादव्यवायादिवास्वप्नाद्धर्षनित्यत्वादचिन्तनाहीजस्वभावाचोपजायते ॥३॥ वह अतिस्थूलपना अधिक तृप्तिकारक, भारी, मीठे, शीतल, चिकने पदार्थोंके खानेसे, कसरत न करनेसे, स्त्री संग न करनेसे, दिनमें सोनेसे, सदा प्रसन्न रहनेसे,चिन्ता न करनेसे और माता पिताके मुटाईके कारणसे होताहै .॥ ३.॥
तस्यातिमात्रंमेदस्विनोमेदएवोपचीयतेनेतरेधातवस्तस्मादस्यायुपोहासः, शैथिल्यात्सौकुमार्याद्गुरुत्वाच्चमेदसोजरोपरोधः, शुक्राबहुत्वान्मेदसावृतमार्गत्वाकच्छ्रव्यवायतादौर्बल्वमसमत्वाद्वातनां दार्गन्ध्यमेदोदोपान्मेदसःस्वभावत्वात्स्वेदलत्वा. चमेदसः, श्लेमसंसर्गाद्विष्यन्दित्वाचवहत्वाव्यायामासहत्वास्वेदावाधः, तीक्ष्णाग्नित्वात्प्रभृतकोप्टवायुवाच्चक्षुदतिमात्रं पिपासायोगश्चेति ॥४॥ उस यति स्थल पुपके शरीरमें केवल चव मात्र बढती जाती हैं और सव धारा वरनंगे बन्द होनातह तथा क्षीण होने लगजातहै इस लिये मेदस्वी पुरुषकी आयुका