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सूत्रस्थान-अ० १८.
(२१५) विसर्पका कारण ॥ यस्यापित्तंप्रकुपितंसरक्तत्वचिसर्पति ।. . शोथंसरागंजनयन्विसर्पस्तस्यजायते ॥ २१॥ :
जिसके पित्त कुपित होकर रुधिरके साथ मिलकर त्वचा में विचरता हुआ लाल रंगका शोथ प्रगट करे उस शोथको विसर्प कहतेहैं ॥ २१॥
यस्यपित्तंप्रकुपितंत्वचिरक्तेऽवतिष्ठते ।
रागंसशोथञ्जनयपिडकातस्यजायते ॥२२॥ जिसके पित्त कुपित होकर त्वचाके रक्तमें स्थित होकर लाल रंगकी फुनसी सी प्रगट करे उस सूजनको पिडका कहतेहैं ॥ २२॥
तिल झाई नीलक लक्षण । यस्थपित्तंप्रकुपितंशोणितं प्राप्यशुष्यति ।
तिलकापिप्लवोव्यंगो नीलिकाचास्यजायते ॥ २३॥ कुपितहुआ पित्त जिसके रक्तमें प्रवेश करके सूखजाय उसके शरीरमें तिल,छाई लहसन नीलका आदि क्षुद्ररोगोंको प्रगट करताहै ॥ २३॥
शंखकके लक्षण । यस्यपित्तंप्रकुपितंशंखयारेवतिष्ठते। . . • श्वयथुःशंखकोनामदारुणस्तस्यजायते ॥२४॥ जिसके कुपित हुआ पित्त शंखें, (शिरकी हड्डियों) में प्राप्त हो शोथ करें एस शोथको 'शंखक' नामक दारुणशोथ कहतेहैं ॥ २४॥ .
कर्णमूलका कारण। यस्यपित्तंप्रकुपितंकर्णमूलेऽवतिष्ठते । ।
ज्वरान्तेदुर्जयोऽन्तायशोथस्तस्योपजायते ॥ २५॥ जिसके पित्त कुपित होकर कानकी जडमें शोथ प्रगटकरे तो यह कर्णमूल शोथ दुर्जय होताहै यदि यह शोथ ज्वरके अंतमें प्रकट होय तो मनुष्यका भी अंत करदेताहै ॥ २५ ॥ .
. प्लीहाका कारण । वातःपीहानमुद्धयकुपितोयस्यतिष्ठति । शूलै परितुदन्पाइवप्लीहातस्याभिवर्द्धते ॥ २६ ॥