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सूत्रस्थान-अ० १८. .
(२१३) तथा स्नेहन करनेसे और गरम-वस्तुओंके लेप या मर्दनसे शांत होजाय वह वायुका सूजन जानना ॥ ७॥८॥
- पित्तजशोथ लक्षण । यापिपासाज्वरातस्यद्वयतेऽथविदह्यते । स्विद्यतेक्लिद्यतेगन्धी सपित्तश्वयथुः स्मृतः॥ ९॥ यःपीतनेत्रवक्रत्वपूर्वमध्या
प्रसूयते । तनुत्वक्चातिसारीचपित्तशोथःसउच्यते ॥ १०॥ जिस शोथमें-प्यास, ज्वर, पीडा, दाह, हों और पसीना आताहो तथा वेद, दुर्गन्ध, आतेहों वह पित्तका सूजन कहाहै । और जिसमें रोगीके मुख, नेत्र, त्वचा पीले होगयेहों, पहले शरीरके मध्य भागसे उत्पन्न हो, शोथके ऊपर त्वचा पतली सी प्रतीत हो, और रोगीको दस्त आतेहों तो वह पित्तकी सूजन कही जातीहै ॥९॥ १०॥
कफजशोथ लक्षण । यःशीतलःसक्तगतिःकण्डूमान्पाण्डुरेवच । निपीडितोनोन्नमातिश्वयथुःस कफात्मकः ॥ ११ ॥ यस्यशस्त्रकुशच्छेदाच्छोणितेनप्रवर्तते । कच्छेणपिच्छान्स्रवतिसचापिकफस
म्भवः ॥ १२॥ - जो शोथ स्पर्शमें शीतल हो, स्थिर रहे, खुजलीयुक्त हो, पांडुवर्णका हो, दबानेसे न दवे वह सूजन कफात्मक होताहै । जिस सूजनमें कुशा, शस्त्र, आदिसे छेदन करनेपर भी रक्त न निकले, और कठिनतासे थोडा गाढा स्त्राव हो उस सूजनको कफसे उत्पन्नहुआ जानना ॥ ११ ॥ १२॥
निदानातिसंसर्गाच्छ्यथुःस्याविदोषजः।
सर्वाकविःसन्निपाताच्छोथोव्यामिश्रहेतुजः॥ १३ ॥ दो दोषोंके निदान और लक्षण मिलनेस द्विदोषज शोथ जानना । जिसमें तीनों दोषोंके हेतु, लक्षण मिलते हों वह सन्निपातका सूजन जानना ॥ १३ ॥ ___ यस्तुपादाभिनिवृत्तःशाथःसर्वाङ्गगोभवेत् ।
जन्तोःसचसुकष्टःस्यात्प्रसृतः स्त्रीमुखाच्चयः॥ १४ ॥ , जो सोज पुरुषके पावोंसे उत्पन्न होकर सब अंगोंमें व्यापक होजाय और स्त्रीक मुखसे उठकर सब अंगोंमें प्राप्त होजाय वह सूजन कष्टसाध्य होताहै ॥ १४ ॥