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सूत्रस्थान अ० १४... (२११) भिद्यतइवपीड्यतइवसूचीभिरिवतुद्यतेपिपीलिकाभिरिवसंसप्यतेसर्षपकल्कालिप्तइवचिमिचिमायतेसंकुच्यतेआयम्यतेइतिवातशोथः ॥३॥
. शोथके विशेष कारण यह हैं कि शीतल, रूक्ष, हलके, और विशद पदार्थके अधिक सेवनसे,परिश्रम और उपवासके कारण कृश होनेसे और आक्षेपण आदिसे वायु कुपित होकर त्वचा, मांस, रक्तादिकमें प्राप्त हो शोथको उत्पन्न करदेताहै। वह वातजन्य शोथ शीघ्र प्रगट और शीघ्र ही शांत होजाताहै । वह काला, लाल तथा रूक्षवर्ण होताहै,इधर उधर चलनेवाला होताहै और फडकताहै। इसमें त्वचा,लोम: कडे खरदरे तथा फटेसे होतेहैं । और छेदने, भेदने,पीडन करने तथा सई चुभोनेके समान पीडा होतीहै । इस शोथमें कीडियोंके चलनेके समान प्रतीत होताहै और सर्षप पीसकर लेपकरनेसे जैसी चरचराहट लगतीहै यह शोथ कभी कम होजातीहै कभी फैलजातीहै । यह सव लक्षण वातके सूजनके हैं ॥ ३ ॥ .
पित्तनशोथ। . : उष्णतीक्ष्णकटुकक्षारलवणाम्लाकीर्णभोजनैरग्यातपप्रतापैश्च.
पित्तंप्रकुपितंत्वङ्मांसशोणितान्यभिभूयशोथञ्जनयति ।साक्ष- . प्रोत्थानप्रशमोभवति । कृष्णपीतनीलताम्रकावभासउष्णो , मृदुःकपिलताम्रलोमाउष्यतेयतेधूप्यतेऊष्मायतस्विद्यतक्लि- : यतेनचस्पर्शमुष्णंवासुष्यतेइंतिपित्तशोथः ॥ ४॥ . उष्ण, तीक्ष्ण, कटु, क्षार, नमकीन और अजीर्णकारक पदार्थोके खानेसे,अनि, धूप और संतापके सहनेसे पित्त कुपित होकर त्वचा,मांस,रक्त आदिको विमाडकर सूजन प्रगट करताहै । यह शीघ्र ही उत्पन्न होजाता और शांत होजाताहै। और यह काले,पीले,नीले और तामेके वर्णका होताहै । तथा स्पर्शमें उष्ण और नम्र होताहै। लोम भूरे और ताम्रवर्णके प्रतीत होतेहैं । इसमें दाह और पीडा अधिक होतीहै, धूआंसा उठताहै अग्निके समान गर्म मालूम हो, पसीना आवे, क्लेद निकलांगरम वस्तु छू ही न जाय । यह पित्तशोथके लक्षण हैं ॥ ४॥ .
कफजशोथ । . . . गुरुमधुरशीतस्निग्धैरतिस्वप्नव्यायामादिभिश्चश्लेष्माप्रकुपितः त्वङ्मांसशोणितादीन्यभिभूयशोथञ्जनयति । स कच्छ्रोत्था