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सूत्रस्थान-अ. १९: .. (२२३.) : त्यूर्द्धभागमधोभागमुभयभागञ्चाद्वौज्वरौ शीतसमुत्थश्चशी
ताभिप्रायश्चोष्णसमुत्थ इति उष्णाभिप्रायः ॥द्वौत्रणौइतिनिजश्चागन्तुजश्च ॥ द्वावायामावितिबाह्यश्चाभ्यन्तरश्चद्वेिगृध्रस्थावितिवाताद्वातकफाच॥ देकामलेइतिकोष्ठाश्रयाशाखाश्रयाच ॥ द्विविधमाममित्यलसकोविसूचिकाचति ॥द्विविधवातरक्तमितिगम्भीरमुत्तानञ्च । द्विविधान्यासीतिआणिशुकाणिच ॥ एकऊरुष्कंभइतिआमत्रिदोषसमुत्थानः ॥ एकः संन्यासइति ॥ त्रिदोषात्मकोमनःशरीराधिष्ठानसमुत्थः ।। एकोमहागदइतिअवत्त्वाभिनिवेशः ॥ २॥ वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, प्लीहोदर, बद्धोदर, छिद्रोदर, जलोदर, इन भेदोंसे ८ प्रकारके उदररोग हैं वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, अश्मरीजन्य, शर्कराजन्य,शुक्रदोषज,और रक्तजन्य, यह, आठ प्रकारके मूत्राघात हैं । विवर्णता, 'विकृतिगंधि, वैरस्य, पिच्छिलता, फेनयुक्तता, रूक्षता, भारपिन,यह आठ स्तनोंके, दूधके विकार हैं। पतलापन,मूखापन,फेनयुक्त, सफेदी न होना, दुर्गंधित,पिच्छिल, अन्यधातुमिश्रित, अवसादयुक्त यह आठ वीर्यके दोष होते हैं। कुष्ठके सात भेद हैं । जैसे-कपाल, उदुंबर, मंडल, ऋष्याजित, पुंडरीक, सिध्म, और काकण । शराविका, कच्छपिका, जालनी, सर्षपी, अलजी, विनता, विद्रधि, इन भेदोंसे पिडका ७ प्रकारकी है । वातन, पित्तज, कफज, सन्निपातन, अग्निीवसर्प, कर्दमविसर्प, ग्रंथिविसर्प इन भेदोंसे विसर्प ७ प्रकारका है । वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज, भयज, शोकज इन भेदोंसे अतिसार, ६ प्रकारके हैं, अधोवात, मूत्र,पुरीष, शुक्र, छर्दिछीक,इन छहोंका वेग रोकनेसे छ प्रकारके उदावत होतेहैं।वातज,पित्तज, कफज, सन्निपातज, रक्तज, इन भेदोंसे गुल्म पांच प्रकारके है । गुल्मके समान ही पांच प्रकारके प्लीहाके विकार होते हैं । वात, पित्त, कफ, क्षत, क्षय इन से पांच प्रकारकी खांसी होतीहै । ऐसे ही वातज, पित्तज, कफज, क्षतज, क्षयज, इन भेदोंसे श्वास पांच प्रकारका है । महती, गंभीरा, व्यपेता, क्षुद्रा, अनजा इन भेदोंसे पांच. प्रकारकी हिचकी है। वातज, पित्तज, आमज, क्षयज, उपसर्गज इन भेदोंसे तृषा पांच प्रकारकी होती है। द्वेषजनक अन्नसे, वात, पित्त, कफ, और सन्निपातसे छर्दि पांच प्रकारकी है । वातज, पित्तज, कफज, देषज, अमज इन भेदोंसे अरुचि पांच प्रकारकी है। सामान्य संग्रहके उद्देशसे वातज,