________________
(१७२ )
चरकसंहिता-भा० टी०। पञ्चदशोऽध्यायः।
-CHHOअथातउपकल्पनीयमध्यायव्याख्यास्याम इतिहस्माहभगवानात्रेयः। अब हम उपकल्पनीय अध्यायकी व्याख्या करतेहैं । ऐसा भगवान् आत्रेयजी कहनेलगे।
इहखलुराजानंराजमात्रमन्यवाविपुलद्रव्यंसंभृतसम्भारंवमनविरेचनवापाययितुकामेनभिपजाप्रागेवौषधपानात्सम्भाराउपकल्पनीयाभवन्ति सम्यक्चैवहिगच्छत्यौपधेप्रतिभोगाथाः व्यापन्नेचौषधेव्यापदः परिसंख्यायप्रतीकारार्थाः । नहिसन्निकटेकालेप्रादुर्भतायामापदिसत्यपिक्रयाक्रयेसुकरमाशुसम्भरणमौपधानांयथावदित्येवंवादिनभगवन्तमात्रेयमानिवेश उवाच ॥१॥
जब राजा अथवा राजाके समान अन्य धनाढ्य पुरुष हो जिसके यहां बहुतसा द्रव्य, धन,संपत्ति, साधन, सामग्री हो उसको वमन या विरेचनकी औषधिका पान कराना हो तो वैद्यको उचित है कि औषध पिलानेसे प्रथम सव प्रकारकी आवश्यक वस्तुएं अपने समीप रखले । क्योंकि वमन विरेचनके समय और वमन विरेचन हो लेनेके अनंतर जिन २ वस्तुओंकी आवश्यकता पडतीहै वह उसी समय तैयार मिल. नेसे रोगीको आराम मिलताहै और उसके वमनादि कार्यमें कोई हानि नहीं होती ऐसा होनेसे रोगीका उपकार होताहै। यदि वमन विरेचनमें कोई उपद्रव भी होजाय तो ऑपध तैयार पास होनेसे झट उपद्रव शांत होसकते हैं। ऐसा न करने पर यदि, वमन विरेचनके समय कोई उपद्रव होनेलगे तो औषध वेचनेकी दूकान समीप होने पर भी यथोचित औषध तैयार करके देनेम समय लगजाताहे उस समय बडी फटिनता पडती । इसप्रकार कथन करतेहुए भगवान् आत्रेयजीसे अग्निवेश कहने। लगे।॥ १॥
ननभगवन्नादाववज्ञानवतातथाप्रतिविधातव्यंयथाप्रतिविहितसिद्धयेदेवोपधमेकान्तेन । सम्यकप्रयोगनिमित्ताहिसर्वकर्मगांसिन्दिरिष्टाव्यापञ्चासम्यकप्रयोगनिमित्ता । अथसम्यगस