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चरकसंहिता-भा. टी. वीर्य क्षय होनेसे दुर्वलता, मुखका सुखना, शरीरका पीला पडजाना,अंगोंका रहनाना, क्लम, नपुंसकता, और वीर्यका न आना यह लक्षण होतेहैं ॥ ६६ ॥
विष्टाक्षयके लक्षण । क्षीणेशकृतिचान्त्राणिपीडयन्निवमारुतः।
रूक्षस्योन्नमयन्कुक्षितिर्यगूर्द्धश्चगच्छति ॥६७॥ मलके क्षय होनेसे वायु आतोंको पीडन करताहै ऐसा प्रतीत होताहै । और इसी कारण उस रूक्ष मनुष्यके शरीरमें वायु कूखको ऊंची तिरछी करता हुआ उपरको गमन करताहै ॥ ६७ ॥
मूवक्षीणका लक्षण । मूत्रक्षयेमूत्रकृच्छ्रमूत्रवैवर्ण्यमेवच ।
पिपासावाधतेचास्यमुखञ्चपरिशुष्यति ॥ ६८ ॥ मूत्रके क्षय होनेसे मूत्रकृच्छ्, मूत्रकी विवर्णता, प्यास, मुखशोष, यह लक्षण होतेहैं ॥ ६८॥
मलक्षीणके लक्षण । मलायनानिचान्यानिशन्यानिचलघूनिच ।
विशुष्काणिचलक्ष्यन्तेयथास्वंमलसंक्षये ॥ ६९ ॥ अन्यरमलमागोंके मलहीन होनेसे वह मार्ग शून्यतायुक्त तथा हलके और सूखेसे प्रतीत होतेहैं ॥ ६ ॥
क्षीण ओजका लक्षण । विभेतिदुर्वलोऽभीक्ष्णंध्यायतिव्यथितेन्द्रियः ।
दुच्छायोदुर्मनारूक्षःक्षामश्चैवौजसःक्षये ॥ ७०॥ ओजके क्षय होनेसे मनुष्य भयभीत, दुर्वल, निरंतर चिंतायुक्त, विकलेंद्रिय, कांतिगहत, रूक्ष और कृश होजातोह ॥ ७० ॥
__ ओजलक्षण । हदितिष्टतियच्छुद्धरतमीपत्सपतिकम् ।
ओजःशरीरसंख्यातंतनाशान्नाविनश्यति ॥ ७१ ॥ जो शुद्ध रक्त किंचित् पीतता लिये हृदयमें रहताहै शरीरम उसको ओज कह तर, उस ओजक नाश होने से मनुष्य भी नाशको प्राप्त होताहै ॥ ७१॥