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चरकसंहिता-मा० टी०। मधुमेहकी उपक्षासे सात प्रकारको दारुण पिढका मांसवाले स्थानोंमें, मर्मस्था: नमें, संधिस्थानमं, उत्पन्न होतीहैं। उनक-शराविका, कच्छपिका, जालनी, सर्षपी, अलजी, विनता, विद्रधि, यह सात नाम हैं ॥ ८ ॥७९॥
शराविका लक्षण । अन्तोन्नतामध्यनिम्नाश्यावाक्लेदरुजान्विता। शराविकास्यात्पिडकाशरावाकृतिसंस्थिता ॥८॥ जो पिडका ऊंचे किनारोंवाली हो मध्यमेंसे नीची हो स्राव केद और पीडा युक्त हो तथा शरावके आकारकी हो उसको शराविका कहतेहैं ॥ ८०॥
कच्छपिका लक्षण । अवगाढातिनिस्तोदामहावास्तुपारग्रहा।।
श्लक्ष्णाकच्छपपृष्ठाभापिडकाकच्छपीमता॥ ८१ ॥ जिसमें कडापन हो, भेदनकी सी पीडा होतीहो, गंभीर हो,जो अनेक स्थानोंमें व्यापक हो, जिसका ऊपरका भाग चिकना और कछुवेकी पीठके समान हो उसको कच्छपिका कहतेहे ॥ ८१॥
जालनी लक्षण । स्तब्धाशिराजालवतीस्निग्धस्त्रावामहाशया।
रुजानिस्तोदवहुलासूक्ष्मच्छिद्राचजालिनी ॥ ८२॥ जो पिडकः चौडीसी हो, उसपर नसोंका जालसा दिखाई देताहो, उसमेंसे चिकना २साव होताहो, अधिक दूर तक व्याप्त हो जिसमें अत्यंत पीडा हो, भेदनकी सी पीडा हो, छोटे २ बहुतसे छिद्र हों उसको जालनी कहतेहे ॥ ८२ ।।
सर्पपिका लक्षण। पिडकानातिमहतीक्षिप्रपाकामहारुजा।
सर्पपीतर्षपाभाभिःपिडकाभिश्चिताभवेत् ॥ ८३॥ जो पिडका बडी न हो, और शीघ्र पकजावे, उसमें पीडा बहुत हो, ससोंके. समान हो, खुजलीयुक्त हो उसको सर्वपिका कहतेहैं ।। ८३ ॥
अलजी लक्षण। दहतित्वमुत्यानेतृष्णामोहज्वरप्रदा। विसर्पत्यनिशंदुःखादहत्यग्निरिवालजी॥ ८ ॥