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सूत्रस्थान - अ० १७.
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जो उत्पन्न होते ही में दाहकरे प्यास, मोह और ज्वर करे, निरंतर अनिके समान दाद करती हुई फैले उसको अलजी कहते हैं ॥ ८४ ॥ ..
विनता लक्षण |
अवगाढरुजाक्लेदा पृष्ठेवाप्युदरेपिवा । महतीविनतार्नाला पिडकाविनतामता ॥ ८५ ॥ विद्रधिद्विविधामा हुर्बाह्यामाभ्यंन्तरीतथा ॥ बाह्यात्व स्नायुमांसोत्थाकण्डरा भामहारुजाः ॥ ८६ ॥ जिस पिडकामें करडापन हो, पीडा अधिक हो, क्लेद अधिक हो, पीठ अथवा पेट पर प्रगट हुईहो, जो बडी हो, दबानेमें नरम हो, नीले रंगकी हो उसको विनता कहते हैं ॥ ८५ ॥ विद्रधी दो प्रकारकी होती है एक बाहरी दूसरी भीतरी । वाह्य विद्रधि- त्वचा, स्नायु और मांसमें प्रगट होती है यह देखने में मोटी नसके समान होती है और इसमें पीड़ा अधिक होती है ॥ ८६ ॥ विद्रधिके लक्षण |
शीतकान्नविदाद्युष्णरूक्षशुष्कातिभाजनात् । विरुद्वाजर्णिसंक्लिष्टविषमासात्म्य भोजनात्। व्यापन्नवहुमद्यत्वाद्वेगसंन्धारणाच्छ्रमात् ॥ ८७॥ जिह्मव्यायामशयनादतिभाराध्वमैथुनात् । अन्तःशरीरे मांसासूगांविशन्तियदामलाः ॥८८॥ तदासञ्जायते ग्रन्थिर्गम्भीरस्थः सुदारुणः । हृदयेक्लोम्नियकृतिप्लीह्निकुक्षौ चवृक्कयोः ॥८९॥ नाभ्यांवंक्षणयोर्वापिवस्तवातत्रिवेदनः । दुष्टरक्तातिमात्रत्वात्सवैशधिंविदह्यते ॥ ९० ॥ ततः शीघ्रविदाहित्वाद्विद्रधीत्यभिधीयते ॥ ९१ ॥
शीतल अन्न, विदाही, रूक्ष, सूखे पदार्थों के खानेसे, अत्यंत भोजन करनेसे, विरुद्ध भोजन, अजीर्णकर्ता पदार्थ, सडे वासे पदार्थ, विषम भोजन, असात्म्य भोजन, तथा दूषित भोजनके सेवनसे, अधिक मद्य पीनेसे, वेगोंको रोकनेसे, श्रमसे, शरीरको विषमता से रखने से, व्यायामकी अधिकतासे, अतिसोनेसे, भार उठानेसे, अति मार्ग. चलने और अति मैथुनते दूषित मल जब शरीरके भीतर मांस और रक्तमें प्रवेश करते हैं तो शरीर के भीतर गंभीर और दारुण ग्रंथिको पैदा करदेते हैं । वह ग्रंथि (गांठ) - हृदय, क्रोम, यकृत, प्लीहा, कुक्षि, दोनों वृक्क, नाभी, वंक्षण अथवा वस्तिमें तीव्र वेदनायुक्त होती है । वह गांठ दुष्टरुधिरकी अधिकता के कारण दाह: