________________
• सूत्रस्थान - अ० १७..
( १९९ वातादि तीन दोष, रसादि सात धातु, मलसमूह और ओज इन सबका क्षय होता है । इनमें वातादि तीन दोषोंके क्षयके लक्षण कहे जाचुके हैं (अब रसादिकोंके कहते हैं ) ॥ ६० ॥
रसक्षयके लक्षण ।
घट्टतेसह ते शब्दनोच्चैद्रवतिदूयते । हृदयंताम्यतिस्वल्पचेष्टस्यापिरसक्षये ॥ ६१ ॥ परुषास्फुटिताम्लानात्वग्रक्षारक्तसंक्षये । मांसक्षयविशेषेणास्फग्ग्रीवोदरशुष्कता ॥ ६२ ॥
रसके क्षय होनेसे हडबडी, ऊंचा शब्द न सहाजाना, खड़े होनेकी ताकत न रहना, हौल होना, हृदयका धक २ करना, अल्प परिश्रम करनेसे भी मनकी व्याकुलता, नेत्रों के आगे अंधकार सा आजाना यह लक्षण होते हैं ॥ ६१ ॥ रक्त के क्षय होनेसे त्वचा कठोर फटीसी और रूखी हो जाती है । मांसके क्षय होनेसे कमर, गर्दन और उदर यह विशेषतासे सूख जावें ॥ ६२ ॥
भेदक्षीणके लक्षण |
सन्धीनां स्फुटनंग्लानिरक्ष्णोरायासएवच । लक्षणमेदसिक्षीणेतनुत्वंचोदरत्वचः ॥ ६३ ॥
मेदके क्षय होनेसे -संधियोंका स्फोटन, ग्लानि, नेत्रोंका निकलसा पडना, थकावट, और उदर तथा त्वचाका कुश होना यह लक्षण होतेहैं ॥ ६३ ॥
अस्थिक्षयके लक्षण |
केशलोमनखश्मश्रुद्विजप्रपतनंश्रमः ।
ज्ञेयमस्थिक्षये रूपसन्धिशैथिल्यमेवच ॥ ६४ ॥
अस्थियोंमें क्षीणता होनेसे केश, लोम, नख, डाढीमूछ और दांतोंका गिरना: और भ्रम तथा संधियोंमें शिथिलता, यह लक्षणं होते हैं ॥ ६४ ॥
मज्जाक्षीणके लक्षण |
शीर्य्यन्तइव चास्थीनि दुर्बलानिलघूनिच ।
प्रततवातरोगीचक्षीणमज्जनिदेहिनाम् ॥ ६५ ॥
मज्जा के क्षय होनेसे हड्डियों का गिरपडना सा प्रतीत होना और दुर्बल तथा हलकी हो जाना, और सदैव शरीरमें वातव्याधिका रहना यह लक्षण होते हैं ॥ ६५ ॥
क्षीणशुक्र के लक्षण | दौर्बल्यंमुखशोषश्च पाण्डुत्वंसदनंक्लमः । क्लैव्यं शुक्रा विसर्गश्चक्षीणशुक्रस्यलक्षणम् ॥ ६६ ॥