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सूत्रस्थान-अ० १५.
(१४९) . वमनके योगायोगादि लक्षण। तत्रअमून्ययोगयोगातियोगविशेषज्ञानानिभवन्ति । तद्यथा अपवृत्तिःकुतश्चित् केवलस्यवाप्यौषधस्यविनंशोविबन्धोवेगानामयोगलक्षणानिभवन्ति ॥ १७॥ उसमें वमनके अयोग, सम्यक् योग, अतियोगके यह लक्षण होतेहैं । वमनका न होना या जो औषध वमनके लिये पीगई हो केवल वह निकलजाय आर वमन न होय । यह वमनके अयोगके लक्षण हैं ॥ १७॥
कालेप्रवृत्तिरनतिमहतीवयथास्वंदोषहरणस्वयञ्चावस्थानमितियोगलक्षणानिभवंतिायोगेनतुदोषप्रमाणविशेषेणतीक्ष्णमूदुमध्यविभागोज्ञेयः। योगाधिक्येनतुफेनिलरक्तचन्द्रिकोपगमनमित्यतियोगलक्षणानिभवन्ति । तत्रातियोगायोगनिमितानिमानुपद्रवान्विद्यात् । आध्मानंपरिकर्तिकापारिस्रावोह. दयोपशरणमङ्गग्रहोजीवादानंविभ्रंशःस्तंभक्लमउपद्रव इति॥१८॥ ठीक समयपर वमन होय अति अधिक वमन न होय, वमनकर्ताको अधिक कष्ट न होय पहले दोषोंको निकालकर फिर औषध निकले । यह वमनके ठीक योगके लक्षण हैं । ठीक योगमें भी तीक्ष्ण, मृदु,मध्य, यह तीन भेद हैं वमनको आतियोग होनेसे छर्दमें झाग, रुधिर, चमक, आदि होतेहैं और वमनके वेग बहुत ज्यादा आतेहैं यह वमनके अतियोगके लक्षण हैं । उनमें प्रयोग और अतियोग होनेसे यह उपद्रव होते हैं जैसे-अफारा,पेटमें काटयुक्त पीडा, रुधिरका निकलना, हृदयकी रुकावट, अंगोंकी शिथिलता, जीवसंज्ञक रक्तका निकलना अथवा जीवनका क्षय होना, जमिका निकलआना, शरीरका स्तंभ, और कायली होना,. यह लक्षण होतेहैं ॥ १८॥
योगेनतुखल्वेनंछतिवन्तमभिसमक्ष्यिसुप्रक्षालितपाणिपा-. दास्यंमुहूर्तमाश्वास्यस्नैहिकवरेचनिकोपशमनीयानांधूमानामन्यतमसामर्थ्यतःपाययित्वापुनरेवोदकमुपस्पर्शयेत्।उपस्पृ. ष्टोदकञ्चैनंनिवातमगारमनुप्रवेश्यसंवेश्यचा शिष्यात् ॥१९॥ . उच्चैर्भाष्यमत्यासनमतिस्थानमतिचंक्रमणक्रोधशोकहिमात-. ..