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( १८०) चरकसंहिता-भा० टी०॥ पावश्यायातिप्रवातान् यानयानंग्राम्यधर्ममस्वपनंनिशिदिवास्वप्नमाविरुद्धाजीर्णासात्म्याकालाप्रमितामितातिहीनगुरुविपमभोजनवेगसन्धारणोदीरणमितिभावानेतान्मनसाप्यसेवमानःसर्वमाहारमयादिति । सतथाकुर्यात् ॥ २० ॥ यदि उत्तम प्रकारसे वमन होलेवे तो उस वमनक के हाथ, पांव,मुख,धुलाकर आराम करने दे फिर दोघडी पश्चात् उसको स्नौहिक धूम या विरेचक धूम अथवा शमन धूम वा यथासाध्य अन्य धूम पान करावाफिर हाथ पाँव नेत्र मुख धुलाकर वात रहित स्थानमं सुखोचित शय्या पर सुलावे और कहे कि ऊंचे स्वरसे बोलना, अधिक वैठना, अत्यंत आराममही पडरहना, अति फिरना, क्रोध, शोक, हिम, धूप, शीत, अत्यंत वायु, सवारी, स्त्रीसंग, जागरण, दिनमें सोना, विरुद्ध भोजन, अजीर्णकर्ता तथा असात्म्य भोजन, असमय भोजन, अल्प भोजन, अतिभोजन, हीन तथा भारी और विषम भोजन, मलमूत्रादिका वेग रोकना, विना वेग मलादि त्यागना, इन कामोंको मनसे भी न करना । और मद्य आदि भी सेवन न करना वमनकर्ताको भी वैद्यके कथनानुसार ही करना चाहिये ॥ १९ ॥ २० ॥
रात्रिक भोजनका क्रम । अथेनंसायाहूपरेवाह्निसुखोदकपारीषिक्तंपुराणानांलोहितशालि. तण्डुलानांस्ववक्लिन्नानांमण्डपूर्वांसुखोष्णांयवागूपाययेदग्निवलमभिसमीक्ष्यचैवंद्वितीयेतृतीयेचान्नकाले चतुर्थे वन्नकाले तथाविधानामेवशालितण्डुलानामुस्विन्नांविलेपीमुष्णोदकद्वितीयामस्नेहलवणामल्पस्नेहलवणांवाभोजयेत् । एवंपञ्चमेषष्टे चान्नकालेसप्तमत्वन्नकालेतथाविधानामेवशालीनांद्विप्रसृतंसुस्विन्नमोदनमुष्णोदकानुपानंतनुमातनुस्नेहलवणोपपन्ननसुद्गयूपेणभोजयेत् ।एवमष्टमेनवमेचान्नकालेदशमत्वन्नकालेलावकपिञ्जलादीनामन्यतमस्यमांसरसेनौदकलावणिकेनापिसारबताभाजयवाउपणोदकानुपानमेवमेकादशेद्वादशेचान्नकाले ॥२१॥ इनके अनंतन उस मनुप्यतः ग्याकाल या दूसरे दिन प्रातःकाल सुखोष्णजलसे स्लान म पुगने नाठी चाल यादिकांका यवागृ बनाकर सुखोष्ण पिलावे ।
दतरे तीसरे नमानी गुलोण नरम २ माटी चावले आदिकी पेया वना.