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सूत्रस्थान-१०.१७.
(१९९) अत्यंत भोजनसे,भारी और चिकने पदार्थों के खानेसे,बेफिकरी और आलस्यसे, अधिक सोनेसे,कफजन्य हृद्रोग उत्पन्न होताहै ।कफके हृद्रोग हृदय सोयाहुआसा, गीला और भारी प्रतीत होताहै । तथा तन्द्रा, अरुचि और हृदयंका पत्थरोंसे दवा हुआसा प्रवीत होना यह लक्षण कफजन्य हृद्रोगमें होतेहे ॥ ३२ ॥ ३३ ॥
सानिपातिक हृद्रोग वर्णन । हेतुलक्षणसंसर्गादुच्यतेसान्निपातिकः । त्रिदोषजेतुहृद्रोगेयो . दुरात्मानिषेवतोतिलक्षारगुडादीनियन्थिस्तस्योपजायते ॥३४॥ मर्मैकदेशेसंक्लेदरसश्चास्योपगच्छति । संक्लेदारिक्रमयश्चास्यभवन्त्युपहतात्मनः ॥३५॥ममैकदेशेतेजाताःसर्पन्तोभक्षयन्तिच । तुद्यमानंस्वहृदयंसूचीभीरिवमन्यते ॥३६॥ छिद्यमानंयथाशस्त्रैर्जातकण्डूमहारुजम् हृद्रोगक्रिमिजंत्वेतैलिङ्गबुद्धासुदारुणम् । त्वरेतजेतुंतविद्वान्विकारंशघिकारिणम् ३७ तीनों दोषोंके हेतुओंसे त्रिदोषके लक्षणोंवाला हृद्रोग होताहै । जो अजितात्मा मनुष्य त्रिदोषके हृद्रोगमें तिल, दूध, गुड, आदि पदार्थोंको खाताहै उसके हृदयमें अंथि उत्पन्न होजातीहै । तब मर्मके किसी एक स्थानमें रस संक्लेदित होजाताहै, उन्लेदसे कृमि होजातेहैं वह किसी एक स्थानमें पैदाहुए कृमि इधर उधर घूमतें
और खाते फिरतेहैं । उस समय इस मनुष्यको. अपने हृदयमें सूई चुभनेकीसी पीडा प्रतीत होतीहै । और जैसे शस्त्रसे कोई काटताहो ऐसा प्रतीत होताहै खुजली और भारी शूल भी कृमिजन्य हृद्रोगके लक्षण हैं । ऐसे घोर लक्षणोंवाले हृदूरी. गको बुद्धिमान् वैद्य त्यागदेवे (या शीघ्र उपायकरे) क्योंकि यह रोग मनुष्यकों शीघ्र मार डालताहै ॥ ३४ ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ ३७॥
सन्निपातके १३ भेद। द्वयुल्वर्णकोल्वणैःषट्रस्युहीनमध्याधिकैश्चषट् ।
समैश्चैकेविकारास्तेसन्निपातेत्रयोदश ॥ ३८॥ .. दो दो दोषोंकी प्रबलतासे ३ एक २ दोषकी प्रबलतासे ३ मिलकर छ. हुए जैसे चातपित्तोल्वण, वातकफोल्वण, कफपित्तोल्वण, वातोल्वण, पित्तोल्वण कफोल्वण यह ६ हुए ऐसे ही वात पित्त कफ इनके हीन मध्य अधिकके भेदोंसे छ। हुए और एक तीनोंकी समतासे, ऐसे सब मिलकर सन्निपात १३ प्रकारके. हुए॥३८॥