________________
(१७८) चरकसंहिता-भा० टी० जव रोमांच होनेलगे तो जाने कि दोष अपने स्थानसे चलायमान होगये और जब कुक्षिम अफारासा होकर दोष कृख तक फैलकर दिल मचलाने लगे तथा मुखसे पानी गिरनेलगे तो समझे कि अब दोष ऊर्ध्वमुख होगहें। फिर इसको सुखपूर्वक घुटनांक वल गद्दाआदि विछीहुई आश्रययुक्त चौकी आदि पर विठावे ॥ १४ ॥
प्रतिग्रहांश्चोपचारयेत् । ललाटप्रतिग्रहपाश्वोपग्रहणेनाभिप्र. पीडनेपृष्टोन्मर्दनेचअव्युपक्रमणीयाःसुहृदोऽनुमताःप्रवर्तेरन्। अथैनमनुशिष्यात् ।विवृतोष्ठतालुकण्ठोनातिमहताव्यायामेनवेगानुदीर्णानुदीरयनकिञ्चिदवनम्यग्रीवामूर्द्धशरीरमुपवेगमप्रवृत्तान्प्रवर्तयन्सूपलिखितनखाभ्यामगुलीभ्यामुत्पलकुमुदसौगन्धिकनालैाकण्ठमनभिस्पृशन्सुखंप्रवर्तयस्वेति॥१५॥
और इसके आगे छदि करनेका पात्र हाथ पोंछनेका साफा जल आदि रक्ख। फिर वैद्य या परिचारक अपने दोनों हाथोंसे पमनकर्ताके ललाटकी दोनों पसीलयांको पकडे । और नाभि तथा पीठको उसके मित्र या परिचारक धीरे २ मसले जिससे सुखपूर्वक वमन हो । और इस रोगीको भी ऐसी शिक्षा देवे कि तू होंठ। तालु कंट खोलकर जिस तरह अधिक श्रम न हो वैसे वमनके वेगको निकाल दे।
और गरदन मस्तक शरीरको कुछेक आगेको झुकाले । यदि वमनका वेग न आता हो तो उसके लानेको साफ किये हुए नखांवाली उंगलियोंसे अथवा कमल, कुमो. दनी, कहार आदिकी नरम डंडीसे हृदयको स्पर्श करे जिससे सुखपूर्वक वमन हो॥ १५ ॥
रमन होनेपर वैद्यका कर्तव्य । सतथाविधंकुर्यात्ततोऽस्यवेगान्प्रतिग्रहगतानवेक्षतावहितः वेगविशेषदर्शनाद्धिकुशलोयोगायोगातियोगविशेपानुपलभेत वेगविशेपदीपुनःकृत्यंयथार्हमदबुद्धयेतलक्षणेन । तस्माद्वेगानवेक्षतावहितः ॥ १६ ॥
रोगीको इसी प्रकार करना चाहिये । फिर कुशल वैद्य सावधानतासे देखें कि चमन टीक होगये या नहीं वमनके वेगोंको देखकर कुशल वैद्य वमनके योग, अतियोग अयोगको परीक्षा करे । यदि कुछ अतियोग आदि दिखाईदेवे तो उस समय करनेयोग्य कृत्योंको विचार ले । इसलिये सावधान होकर वेगों को देखे ॥ १६ ॥