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चरकसंहिता-भा० टी०। अथात् वारीक है । इनके सूक्ष्म विचार करनमें वडे २ निर्मल और विपुल बुद्धिचालेकी बुद्धि भी व्याकुल होजाती है।फिर विचारे अल्पबुद्धिवालोंका तो कहना ही क्या है ॥ ४ ॥५॥
तस्मादुभयमेतद्यथावदुपदेक्ष्यामः । सम्यक्प्रयोगञ्चौषधानां व्यापन्नानाञ्चव्यापत्साधनानिसिदिषूत्तरकालम्। इदानींताव
संभाराविविधानपिसमासेनोपदेक्ष्यामः॥६॥ इसलिये हम दोनों प्रकारोंको अर्थात् जिस प्रयोगसे उपद्रव न हों उनका कथन करेंगे और यदि किसी कारणले कहीं कोई उपद्रव होजाय उनका शमनोपाय भी कथन करेंगे । औषधोंका.उत्तम प्रयोग, और वमनादिमें कोई विकार हो तो उसका शमनोपाय, इन दोनोंको हम उत्तरकालमै सिद्धिस्थानमें कहेंगे । और वमन विरे. चन विषयक सामग्रियोंको और उनके प्रकारोंको यहां संक्षेपसे कथन करतेहैं॥६॥
निवासस्थानका वर्णन । तद्यथा । दृढनिवातंप्रवातैकदेशंसुखप्रविचारमनुपत्यकंधूमातपरजसामनभिगमनीयमनिष्टानाञ्चशब्दस्पर्शरसरूपगन्धानां सोपानोदूखलमुसलवर्चःस्थानस्नानभूमिमहानसोपेतवास्तुविद्याकुशल प्रशस्तगृहमेवतावत्पूर्वमुपकल्पयेत् ॥७॥
पहले घरके रवनमें कुशल वैद्य एक ऐसा घर वनवावे जिसमें दीवारें आदि सब मजबूत हों, एक भागमें हवा आतीहै । और एक भागमें विल्कुल हवा न लग, जिसमें इधर उधर फिरनेको सीधी और खुली जगह हो, तथा इधर उधरके मका. नासे रुकाहुआ न हो, जिसमें धूम,धूप,धूल. न आतेहों, और बुरे लगनेवाले शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध, न हाय, कुंडी सोटा आदि दवाई कूटनेका सामान रखाहुआ हो, और पीडसाल (सीडी), पाखाना, स्नान करनका स्थान, औषध, भोजन आदि बनानेका स्थान विधिवत् ययास्थान बनेहुए हों ।। ७॥ ततःशीलशौचाचारानुरागदाक्ष्यप्रादक्षिण्योपपन्नानुपचारकुशलान्सर्वकर्मसुपर्य्यवदातानसपोदनपाचकस्नापकसंवाहकोत्थापकसंवेशकोपपेपकांचपरिचारकान्सर्वकर्मस्वप्रतिक. लांस्तथागीतवादित्रोल्लापकश्लोकगाथाख्यायिकेतिहासपुराणकुशलानभिप्रायज्ञाननुमतांश्चदेशकालविदःपरिपद्यांश्च । तथालायकपिञ्जलशशहरिणेणकालपुच्छकमृगमातृकोरभ्रान्॥८॥