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चरकसंहिता-भा० टी०। टीक स्नेहन हुए मनुप्यके वायुका ठीक अनुलोमन होना, अनि चैतन्य होना, मल गांटरहित स्निग्ध होना, शरीरमें नम्रता तथा चिकनाहट होना यह लक्षण होतेहैं ।। ५६ ॥
___ अतिस्निग्धके लक्षण । पाण्डुतागौरवंजाड्यंपुरीपस्याविपक्वता ।
तन्द्राह्यरुचिरुलेशःस्यादतिस्निग्धलक्षणम् ॥ ५७ ॥ अत्यंत स्नेहन होनेसे-पांड, गुरुता,जडता, मलका, कच्चा गिरना, तंद्रा,अरुचि,. जी मचलाना, यह लक्षण होतेहैं ।। ५७ ॥
स्नेहपानके पूर्व कर्तव्य कर्म । द्रवोष्णमनभिष्यन्दिभोज्यमन्नंप्रमाणतः।
नातिस्निग्धमसंकीर्णश्वःस्नेहपातुमिच्छता ॥ ५८॥ स्नेहपान करनेसे पहले दिन पतला, उष्ण, हलका, थोडीसी चिकनाईयुक्त,खिचडी आदि प्रमाणसे भोजन करे ।। ५८॥
स्नेहपानके पश्चात्कर्म । पिवेत्संशमनंस्नेहमन्नकालेप्रकांक्षितः।
शुद्धयर्थपुनराहारनैशेजीणेपिवेन्नरः॥ ५९॥ संशमन स्नेह अर्थात् वातकी शांतिके लिये भोजनके समय पान करे । जब रातका किया भोजन पचचुकाहो उस समय ( प्रातःकाल ) संशोधन स्नेहपान करे ॥५९ ॥
पीतनेहव्यक्तिके कर्तव्य कम । उष्णोदकोपचारीस्याब्रह्मचारीक्षपाशयः शकुन्मूत्रानिलोदारानुदीर्णाश्चनधारयेत्॥६०॥ व्यायाममुच्चैर्वचनंक्रोधशोकोहिसातपो । वर्जयेदप्रवातञ्चसेवेतशयनासनम् ॥ ६१ ॥ नेहपान करके गरम पानी पीना चाहिये । और इंद्रियोंको वशमें रक्खें । दिनमें नसावे । मल,मूत्र, और डकारके वेगको न रोके । व्यायाम, उंचा वोलना, क्रोध, शोक. दिम, धूप, इनको त्यागदेवे जिस स्थानमें अधिक पवन न लगतीहो उसम बेटे ओरायन को ॥६०॥६१ ॥
अधिक न्नेहपानके दोप। लहंपीत्वानरःन्नेहंप्रतिभुञ्जानएव च । सहमिथ्योपचाराडिजायन्तेदारुणागदाः ॥६२॥