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सूत्रस्थान - अ० १३.
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स्नेहपान में कुपथ्य होनेसे - तन्द्रा, उत्क्लेश, अफारा, ज्वर, स्तंभ, बेहोशी, कुष्ठ, खुजली, शोथ, अर्श, अरुचि, प्यास, उदररोग, ग्रहणीदोष, देहमें गीलापनसा, वाणीका स्तंभन दोना, शूल, आमदोष यह उपद्रव होते हैं। यहां पर भी वमन कराना अथवा स्वेद स्नेह होय तो जीर्ण होनेकी प्रतीक्षा करना और व्याधिका बलावल विचारकर दोषोंको निकालो तथा तक्र, अरिष्ट, रूक्ष अन्न पान तथा गोमूत्र, वा त्रिफलाका सेवन करना हितकारी है विना समय अथवा अहितकारी या अतिमात्रा से स्नेहपान करनेसे अथवा स्नेहपान के मिथ्यायोग होनेसे स्नेहव्यापात्ते ( स्नेहसे प्रगट रोग ) होतेहैं ॥ ७४-७७ ॥
स्नेहपान में विरेचनाविधे ।
स्नेहोमिथ्योपचाराच्चव्यापद्येतातिसोवितः । स्नेहात्प्रस्कन्दनोजन्तुस्त्रिरात्रोपरतःपिबेत् ॥ ७८ ॥ स्नेहञ्चद्रवमुष्णञ्चत्र्यहं भुक्त्वारसौदनम्। एकाहो परतस्तद्वमुक्त्वाप्रच्छर्द्दनं पिबेत्॥७९॥
विना विधि स्नेहपानसे यदि रोगादि होय तो तीन दिन स्नेहको त्यागदेवे और मांसरस तथा अन्न भोजन करे फिर चौथे दिन बहुतसे स्नेहको द्रव और गर्म पदार्थों • में मिलाकर पीवे । अथवा वमन करादेवे और एक दिन ठहर कर फिर स्नेह पीवे !: संशोधन स्नेह पीकर जैसे विरेचन के दिन गर्म जल आदि पीते हैं वैसा उपचारकरे ॥ ७८ ॥ ७९ ॥
स्यात्तुसंशोधनार्थायवृत्तिःस्नेहेविरिक्तिवत्। स्नेहद्विषः स्नेहनित्यामृदुकोष्ठाश्चयेनराः ॥ क्लेशासहामद्यनित्यास्तेषामिष्टा विचारणा ॥ ८० ॥ लावतैत्तिरिमायूर हंसवाराहकौश्कुटाः || ॥ ८१ ॥ गव्यजोरभ्रमात्स्याश्चरसाः स्वेस्नेहनेहिताः ॥ ८२ ॥ जिसको स्नेहपानसे द्वेष हो, जो सदैव स्नेह पीता हो, जो मृदुकोष्ठवाला हो, जो क्लेशको सहन करनेवाला हो, जो नित्य मद्य पीता हो, इनको विचारणा स्नेह( किसी रस आदि योगसे ) पान करना चाहिये । ऐसे मौके पर गौके दूध अथवा लवा तीतर, मोर, सूकर, मुरगा, बकरी, मेढा, मछली इनके मांसरसके संयोगसे स्नेहपान करावे ॥ ८० ॥ ८१ ॥ ८२ ॥
स्नेहमें मिलानेयोग्य यूष । और यूषके द्रव्य । यवकोलकुलत्थाश्चस्नेहाः सगुडशर्कराः ॥ दाडिमंदधिसव्योषंरस संयोगसंग्रहः । स्नेहयन्तितिलाः पूर्वजग्धाः सस्नेहफाणिताः ॥ ८३ ॥