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- (१३६) चरकसंहिता-भा० टो।
. . . वाह्नीकका मत। तच्छ्रुत्वावाक्यंकाङ्क्षायनोवाहीकभिषगुवाच । एवमेतद्यथा भगवानाह । एतान्येववातप्रकोपनानिभवन्ति। अतोविपरीतानिखल्वस्यप्रशमनानिभवन्ति । प्रकोपनविपर्ययोहिधाननांप्रशमकारणमिति ॥४॥ यह वाक्य सुनकर “कांक्षायन-बालीक वैद्य" कहनेलगे जैसे आपने कहाहै वैसे ही है। यही रूक्षादिगुणयुक्त द्रव्यादि वातके कोप करनेमें कारण होतेहैं । इससे विपरीत स्निग्धादिगुण प्रभाव युक्त द्रव्यों या काँसे वातकी शान्ति होतीहै क्योंकि प्रकोपके कारणस विपरीनगुणोंवाले द्रव्यादिकोंका सेवन ही धातुओं (वातादिकोंसे. हो यहां धातुशब्दका लक्षण है) को शांत करनेके कारण होतेहैं ॥ ४॥
.. बडिशधामार्गवका मत। तच्छ्रुत्वावाक्यंबडिशोधामार्गवउवाच । एवमेतद्यथाभगवानाह । एतान्येववातप्रकोपप्रशमनानिभवन्ति । यथा नमसंघातमवस्थितमनासाद्यप्रकोपनप्रशमनानिप्रकोपयन्तिप्रशमयन्तिवा । तथानुव्याख्यास्यामः। वातप्रकोपनानिखलुरूक्षलघुशीतदारुणखरविषदशुषिरकराणिशरीराणांतथाविधेषुशरीरेषुवायुराश्रयंगत्वाआप्याथ्यमानःप्रकोपमापद्यते।वातप्रशमनानिपुनःस्निग्धगुरूष्णलक्ष्णमृदुंपिच्छिलघनकराणिशरीराणांतथाविधेषुशरीरेषुवायुरासज्यमानश्चरन्प्रशान्तिमापद्यते ५ यह सुनकर "वडिश धामार्गव बोले, जैसे आपने कहा है ठीक ऐसे ही है । यह ही वायुके प्रकोप और शांतिके कारण होतेहैं । जिस प्रकार इस सूक्ष्म और चल वायुको प्राप्त हो कोपकारक और शांतिकारक द्रव्य प्रकुपित और शमनको प्राप्त होतेहैं उनका वर्णन भी करतेहैं । वह ऐसेहैं वातको प्रकुपित करनेवाले पदार्थ अपने रूक्ष, लघु, शीतल, दारुण, खर, विशद और शुषिर करनेवाले गुणोंसे वातस्वभाववाले शरीरोंमें वायुके आश्रय होकर वायुके कोपको प्राप्त होतेहैं अर्थात् रूक्षादि गुणोंवाले पदार्थ वातप्रधान शरीरमें अपने रूक्षादि गुणोंसे वायुको बढ़ाकर कुपित करदेतेहैं । (तात्पर्य यह हुआ कि अपने रूक्षादि गुणोंको प्राप्त हो वायु बढ़कर कुपित होजाताहै )। ऐसे ही वातको शान्त करनेवाले द्रव्य शरीरोंमें-चिकनाई गुरुता उष्णता श्लक्ष्णता, कोमलता पिच्छिलता और घनताको करतेहैं । फिर