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सूत्रस्थान-अ० ११. (११९) गंगामी कुबुद्धिको त्यागकर श्रेष्ठबुद्धिरूप दीपकसे जैसा जो कुछ यथार्थ (ठीक २) हा उसकी परीक्षा करे अर्थात् देखलेवे ॥ १४ ॥
सत्असतकी परीक्षा। द्विविधमेवखलुसर्वसच्चासच्चतस्यचतुर्विधापरीक्षा ।
आप्तोपदेशः प्रत्यक्षमनुमानयुक्तिश्चति ॥ १५॥ . संपूर्ण जगत्में भला और बुग यह दो भेद हैं । सत् सत्यको कहतेहैं और असत् झूठको कहतेहैं। इन सत् और असत्के जाननेके लिये चार प्रकारकी परीक्षा है अर्थात् चार प्रमाणों द्वारा यावन्मात्रका सत् और असद निर्णय होसकता है। वह चार परीक्षा (प्रमाण) यह हैं । १ आप्तोपदेशं, २ प्रत्यक्ष, ३ अनुमान और ४ युक्ति ॥१५॥
आप्त तथा उनका उपदेश।
आप्तास्तावत् । रजस्तमोभ्यांनिर्मुक्तास्तपोज्ञानबलेनये । येषांत्रिकालममलं ज्ञानमव्याहतंसदा ॥ १६॥ आता:शिष्टविबुद्धास्तेतेषांवाक्यमसंशयम् । सत्यंवक्ष्यन्तितेकस्मादसत्यं नीरजस्तमाः॥१७॥
अब पहले आप्तके लक्षण कहतेहैं । जिन महात्माओंका रजोगुण और तमोगुण तप तथा ज्ञानके वलसे नष्ट होगयौहै और जो भूत, भविष्यत्, वर्तमान के जानने वाले हैं तथा जिनका निर्मल ज्ञान कभी नष्ट नहीं होता उन महात्माओंको आप्त शिष्ट और ज्ञानी कहतेहैं इनके वाक्य निःसंदेह सत्य होतेहैं क्योंकि, रज तमसे निर्मुक्त होनेके कारण यह असत्य बोलतेही नहीं इसलिये इनके वाक्य (आप्तोप देश) निःसन्देह सत्य माननीय हैं ॥ १६ ॥ १७ ॥
प्रत्यक्षका लक्षण ।। आत्मेन्द्रियमनोऽर्थानांसान्निकर्षा प्रवर्तते ।
व्यक्तातदात्वेयाबुद्धिःप्रत्यक्षंसानिरुच्यते ॥१८॥ आत्मा, इंद्रिय, मन और इंद्रियका विषय इन सवका सनिकर्ष होनेसे जो निश्चयात्मक ज्ञान होताहै उसको प्रत्यक्ष कहते हैं ॥ १८॥
" अनुमानका लक्षण! . प्रत्यक्षपूर्वत्रिविधंत्रिकालञ्चानुमीयते । वह्निनिगूढोधूमेनमै- ' "थुनगर्भदर्शनात् ॥ १९ ॥ एवंव्यवस्यन्त्यतीतंबोजात्फलमनागतम् । दृष्टावीजात्फलं जातमिहैवसदृशंबुधाः॥२०॥