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सूत्रस्थान - अ० ११. ..
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सर्वशोऽदर्शनमयोगः । अतिसूक्ष्मातिविप्रकृष्टरौद्र भैरवाद्भुतद्विष्टबीभत्सविकृतादिरूपदर्शनं मिथ्यायोगः ॥ ३४ ॥
(३ आयतन) इंद्रियार्थ, कर्म, काल, इन तीनोंका अतियोग, अयोग,. - मिथ्यायोग, तीन प्रकारके आयतन अर्थात् रोगों के पैदा करनेवाले कारण कहे जाते हैं । उनमें अत्यंत कांतिवाले पदार्थको बहुत गौरसे अधिक देर देखना यह. अतियोग है । और एकदम सवतरह से देखना बंद करदेना. अयोग कहाता है । इसी प्रकार बहुत बारीक, अत्यंत समीप, तथा बहुत दूर, अतिभयंकर, अद्भुत, बुरा लग.. नेवाला, जिसके देखनेसे ग्लानि हो, तथा विकृत आदि वस्तुओं के देखनेको मिथ्यायोग कहते हैं (यह दर्शनेंन्द्रियका अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग हुआ ॥ ३४ ॥ शब्दातियोगादिका वर्णन । तथातिमात्रस्तनितोपहतकुष्टादीनां शब्दानामतिमात्रश्रवणमतियोगः । सर्वशोऽश्रवणमयोगः । पुरुषेष्टविनाशोपघातप्रधर्षणभीषणादिशब्दश्रवणंमिथ्यायोगः ॥ ३५ ॥
इसी प्रकार, वज्रपातके शब्दको सुनना, नगारे आदिका अथवा किसी वस्तुपर अन्यवस्तुके लगने के तीक्ष्ण शब्दका सुनना, अत्यंत तीक्ष्ण अनुक्रोश आदि शब्दका सुनना अथवा किसी शब्दका बहुत देर तक सुनना श्रवणेन्द्रियका अतियोग होता है कुछ भी न सुनना अयोग कहाता है । ऐसे ही - कठोरवाक्य, प्यारी वस्तुका नाश. वज्रघात, रोमांचकारक शब्द, भयकारक शब्द, ऐसे २ शब्द सुननेको श्रवणेंद्रियका मिथ्यायोग कहा जाता है । यह श्रवणका अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग हुआ ॥ ३५ ॥ गन्धातियो गादिवर्णन | तथातितीक्ष्णाग्राभिष्यन्दिनगन्धानामतिमात्रंप्राणमतियोगः सर्वशोऽप्राणमयोगः । पूतिर्द्विष्टामेध्यक्लिन्न विषपवनकुणपगन्धादिघ्राणंमिथ्यायोगः ॥ ३६ ॥
अतितीक्ष्ण अतिउंग्र, और अभिष्यंदि आदि गन्ध अत्यंत सूधना अतियोग कहा जाता है । कुछ भी न सूघना अयोग और दुर्गंधित, द्वेषयुक्त गंधवाला, अपवित्र: भीगा हुआ विषयुक्त पवन, मुर्देकी गंध, इनके सूंघनेको मिथ्यायोग कहते हैं । यह प्राणका - अतियोग, अयोग, मिथ्यायोग हुआ ॥ ३६ ॥
रसातियोगादिका वर्णन ।
तथारसानामत्यादानमतियोगः । अनादानमयोगः । मिथ्या-: योगोराशिव ज्येष्वाहारविधिविशेषायतनेषूपादेक्ष्यते ॥ ३७ ॥
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