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हैं. १२४) चरकसंहिता--भा० टी०।
....... . . . . . . : उपस्तम्भादि त्रिक। । . . .. अथखलुत्रयउपस्तम्भाः, त्रिविधवलम्, त्रण्यिायतनानि,
, योरोगाः, त्रयोरोगमार्गाः; त्रिविधाभिषजः, त्रिविधमौषध-.... - मिति ॥३१॥. — यहां-तीन उपस्तंभ अर्थात् खम्भे हैं । तीन प्रकारका. वल है तीन आयतन हैं तीन रोग हैं । तीन रोगमार्ग हैं। तीन प्रकारके वैद्य हैं। तीन प्रकारको औषधि हैं ॥ ३१ ॥
उपस्तंभोंका वर्णन। . त्रयउपस्तम्भाइत्याहारःस्वप्नोब्रह्मचर्यमितिएभिस्त्रिभिर्युक्तियुक्तैरुपस्तब्धमुपस्तम्भैःशरीरंबलवर्णोपचयोपचितमनुवर्त- . ते यावदायुषःसंस्कारात् ॥ ३२॥ (३ उपस्तंभ ) आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य, यह तीन शरीरके उपस्तंभ-खम्भ हैं। इन तीनों युक्तियुक्त स्तंभोंके ठीक सेवनसे शरीरमें बल और वर्णकी वृद्धि । होती रहेगी और आयुकी वृद्धि होगी। इसी प्रकार इनके अनुचित व्यवहारसे आयुकी हानि करनेवाले रोग होते हैं उनका इसी अध्यायमें कथन करेंगे.॥ ३२ ॥
तीनप्रकारका वल। संस्कारमहितमनुपसेवमानस्य यइहैवोपदेक्ष्यते । त्रिविधबलमितिसहजकालजयुक्तिकृतञ्चसहजंयच्छरीरसत्त्वयोःशाकतम् । कालकृतमृतुविभागजंवयःकृतञ्च । युक्तिकृतंपुनस्तदा
हारचेष्टायोगजम् ॥ ३३ .... " (३ प्रकारका बल) सहजबल, कालकृतबल, युक्तिकृतबल, यह तीन प्रकारका बल होताहै। इनमें शरीर और मनका जो स्वाभाविक बल है उसको सहजबल . कहतेहैं। और ऋतुविशेष या अवस्थाजन्य जो बल हैं उसको कालकृतवल कहतेहैं । एवं आहार, कसरत, अथवा किसी औषध आदि योग या अभ्याससे प्राप्त किये हुए बलको युक्तिकृत बल कहतेहैं ॥ ३३ ॥...
... तीन आयतनोंका वर्णन । ... ' त्रीण्यायतनानीतिअर्थानांकर्मणः कालस्यचातियोगायोगा.भियोगाः । तत्रातिप्रभाक्तांदृश्यानामतिमात्रंदर्शनमतियोगः