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चरकसंहिता - भा० टी० ।
रोगांके तीन मार्ग | त्रयोरोगमार्गइति । शाखामर्मास्थिसन्धयः कोष्ठञ्च । तत्रशाखारक्तादयोधातवस्त्वक्चवाह्योरोगमार्गः । मर्माणिपुनर्वस्तिहृदयमूर्द्धादीन्यस्थिसन्धयोऽस्थिसंयोगास्तत्रोपनिवद्धाश्चस्त्रा' युकण्डरासमध्यमो रोग मार्गः । कोष्ठपुनरुच्यते महास्रोत: शरीरमध्ये महानिम्नमामपक्वाशयश्चेतिपर्य्यायशब्दैः सरोगमार्ग आभ्यन्तरः ॥ ५३ ॥
रोगमार्ग तीन प्रकारके हैं। वह इस प्रकार हैं १ शाखा, २ मर्म अस्थिसंधि, ३ कोष्ट इनमें शाखा शव्द से रक्तादिधातुएं और त्वचा लेना इनको वाह्यमार्ग कहते हैं । और बस्ति, हृदय, मूर्द्धा आदिक मर्मस्थान, अस्थिसन्धि और अस्थिसंयोग ~ स्थान, एवं उन २ स्थानाम बंधी हुई स्नायु और कंडरा, इनको मध्य रोग मार्ग कहतेहैं । कोष्टशब्दसे कोष्ठके अन्य पर्याय जैसे महास्रोत, शरीरमध्य, महानिम्न, आमाशय, पक्वाशय, इनको आभ्यंतर रोगमार्ग कहते हैं ॥ ५३ ॥
(१०)
बहिर्मार्गज रोगांके नाम ।
तत्रगण्डः पीडकालज्यपचीचर्मकीलाधि मांसालसककुष्टव्यङ्गादयोविकारावहिर्मार्गजाः ॥ ५४ ॥
इनमें गंड ( गलगंड ) पीडका, अलजी, अपची, चर्मकील, अर्बुद, अधिमांस, अस (पावका रोग ), कुष्ठ, और व्यंग आदि रोग बाह्य रोगमार्गसे पैदा होते हैं ॥ ५४ ॥
शाखानुसारीरोग |
वीसर्पश्वयथुगुल्माशविद्रध्यादयः शाखानुसारिणोभवन्ति रोगाः ॥ ५५ ॥
वीसर्प, शोथ, गुल्म, बवासीर, विद्रधि आदि गेग शाखानुसारी कहे जाते हैं५॥ मध्यममार्गानुसारी रोग ।
पक्षवग्रहापतान कार्दितशोपराजयक्ष्मास्थिसंधिशूलगुदभ्रंशादयः शिरोदृद्वस्तिरोगादयश्च मध्यममार्गानुसारिणाभवन्ति रोगाः ॥ ५६ ॥