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सूत्रस्थान - अ० : ११.
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और यह युक्ति से भी सिद्ध है कि पांच महाभूत और छठी आत्मा इन छहों कें संवन्धसे ही गर्भकी उत्पत्ति होती है और गर्भमें आकर जन्म लेनेमें आत्मा के पूर्वजन्मका संबंध है क्योंकि कर्ता और कारण के संयोग होने पर ही क्रियाका आरंभ होता है | किये हुए कर्मका हो फल होता है विना कियेका नहीं होता । जैसे विना बीजके अंकुरकी उत्पत्ति नहीं होसकती । जैसा कोई कर्म करता है उसी प्रकारका फल भोगना पडता है । जैसे जबके बीजसे जवकी उत्पत्ति सर्षपसे सर्षपकी उत्पत्ति होती है अन्य बीजसे अन्यकी उत्पत्ति नहीं होती ऐसे ही जैसा कर्म होता है उसका वैसाही फल होता है । यह युक्ति है ॥ २८ ॥
एवंप्रमाणैश्चतुर्भिरुपदिष्टैःपुनर्भवोधर्म्मद्वारेष्वनुविधीयते ॥ २९ ॥
इस प्रकार चारों प्रमाणोंसे पुनर्जन्म स्पष्ट सिद्ध है इन चार प्रमाणोंद्वारा पुनर्जन्म में आस्तिकता होनेसे मनुष्य धर्मपरायण होसकता है जिन कार्योंके करनेसे मनुष्यका परलोक अच्छा हो सकता है उन धर्मकायाँको कथन करते हैं ॥ २९ ॥ परलोकैषणामें कर्त्तव्य कर्म ।
तद्यथागुरुशुश्रूषायामध्ययनेत्रतचर्य्यायांदारक्रियायामपत्यो
त्पादनेभृत्यभरणेऽतिथिपूजायां दानेनाभिध्यायांतपस्यनसूया - यांदेहवाङ्मनसेकर्म्मण्यविष्ठेदेहेन्द्रियमनोऽर्थ बुद्ध्यात्मपरीक्षायांमनः समाधाविति । यानिचान्यान्यप्येवंविधानिकर्म्माणिसतामविगर्हितानि स्वर्ग्याणिवृत्ति पुष्टिकराणिविद्यात्तान्यारकर्तुम् । तथा कुर्वन्निहचैवयशोलभते प्रेत्यचस्वर्गमिति । तृतीया परलोकैषणाव्याख्याताभवति ॥ ३० ॥
वह परलोकको उत्तम बनानेवाले कर्म इस प्रकार हैं गुरुशुश्रूषा, अध्ययन, और व्रत करना शास्त्रोक्त रीतिले विवाहकर धर्मसे सन्तान पैदा करना, भृत्योंकापालन, अतिथिपूजन, और दान करना, परांये द्रव्यमें लोभ न करना, तप, करना, अनसूया (किसीकी निन्दा न करना ), शरीर, मन, वाणीसे, कोई अशुभ काम न करना, आलस्य न करना, और देह इंद्रिय, मनके विषय, बुद्धि, और आत्मा इनकी. परीक्षा में विषयोंसे मनको रोकनमें तत्पर रहना । तथा और भी जो २ इसप्रकारके सत्कार्य स्वर्गदायक हों और जो श्रेष्ठपुरुषोंसे आनंदित कार्य जीविकाकी वृद्धि करनेवाले समझे उनको भी किया करे। ऐसा करनेसे इस लोकमें यशकी प्राप्ति और परलोकमें स्वर्गकी प्राप्ति होती है। यह तीसरी परलोक एषणा कही गई है ॥ ३० ॥