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सूत्रस्थान-अ० ११.
(११७) उठाकर फिर चावलोंके बडे ढेरमें मिलादो तो फिर वह प्रत्यक्ष नहीं होता! एक वस्तु दूसरेसे बढनाय तबभी प्रत्यक्ष नहीं होता जैसे सूर्य के प्रकाशसे तारागण रहते हुए भी दिखाई नहीं देते और अत्यंत सूक्ष्म होनेसे ( जैसे परमाणु ) भी प्रत्यक्ष नहीं होता इसलिये यह कहदेना कि जो हमारी इंद्रियोंसे प्रत्यक्ष है वह ही है और कुछ नहीं यह कहना अप्रामाणिक चकवाद है श्रुतिवाक्यसे तथा युक्तिसे भी पुनर्जन्मके न होने में कोई हैतु नहीं अर्थात् पुनर्जन्म युक्ति और शास्त्रसे सिद्ध है ॥ ६ ॥ (यह प्रत्यक्षवादियोंका खंडन हो चुका)।
जन्मकारणपर विवाद । आत्मामातुःपितुर्वाय सोपत्ययदिसञ्चरेत्। द्विविधंसञ्चरेदात्मा सर्वोवावयवेनवा ॥ ७ ॥ सर्वश्चेत्सञ्चरेन्मातुःपितुर्वामरणं भवेत् । निरन्तरनावयवःकश्चित्सूक्ष्मस्यचात्मनः ॥ ८ ॥ बुद्धिर्मनश्चनिर्णीतेयथैवात्मातथैवते । येषाञ्चैषामतिस्तेषांयो
स्तिचतुर्विधा ॥९॥ . अव यदि कहो कि माता और पिताका आत्मा ही पुत्र रूपसे पैदा होताहै या माता अथवा पिताके आत्मासे पुत्रका आत्मा उत्पन्न होताहै तो यह भी नहीं होसकता। क्योंकि माता या पिताका आत्मा दो प्रकारसे अपत्यरूपमें आसकता है या तो संपूर्ण रूपसे, अथवा अंशविभाग अर्थात् हिस्सेसे याद कहो कि संपूर्ण आत्मा ही अपत्य (.संतान ) रूपसे संचार करताहै तो माता या पिताका संपूर्ण आत्मा पुत्र में आनेसे माता या पिताका मृत्यु होजाना चाहिये । यदि कहो आत्माका कोई भाग संतानरूपसे पैदा होताहै तो यह भी नहीं होसकता । क्योंकि सूक्ष्म आत्माके विभाग नहीं होसकते । इसलिये यह कहना कि कर्माधीन पुनर्जन्म नहीं होता माता पितासेही आत्माकी उत्पत्ति होतीहै-वृथा है । यदि कहो कि माता पिता की बुद्धि, और मन संतान रूपसे पैदा होतेहैं, यह कहना भी ठीक नहीं, क्योंकि बुद्धि,मन भी आत्माके समान सूक्ष्म हैं और उनके भी विभाग नहीं होसकते दूसरे यह भी बात है जो माता पितासे ही संतानकी उत्पत्ति मानोगे तो उनके मतमें स्वेदज, अंडज, जरायुज, उद्भिज्ज, यह चार प्रकारकी योनि नहीं होसकती क्योंकि बताओ स्वेदसे उत्पन्न होनेवालोंके और जमीनकी पानीयुक्त भाफसे पैदाहोनेवालों के माता पिता कौन हैं अर्थात् कोई नहीं ॥ ७॥ ८॥ ९॥ . ... १ इन्द्रिय और अर्थक सन्निकर्षसे व्यभिचार रहित निश्चयात्मक ज्ञानको प्रत्यक्ष कहतेहैं ।
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