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सूत्रस्थान - अ० ११.
( ११५ ) दुःखदायक पाप नहीं कि आयु तो दीर्घ होय परन्तु धन पास न होय । इसलिये जीवनका परम उपकरण आरोग्यताक्षे अनन्तर धन होता है सो उस धनके प्राप्त करनेके लिये यत्नवान् रहना चाहिये अब उस धनप्राप्तिके यत्नोंको कथन करते हैं ॥ ३ ॥
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धनप्राप्ति के उपाय |
तद्यथा । कृषिपाशुपाल्पवाणिज्यराजोपसेवादीनि । यानिचान्यान्यपि सतामविगर्हितानि कर्माणि वृत्तिपुष्टिकराणिविद्यात्तान्यारभेतकर्तुम् । तथाकुर्वन् दीर्घजीवितमनुवसतः पुरुषो भवतीति । द्वितीयाधनैषणाव्याख्याताभवति ॥ ४ ॥
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जैसे खेती करना, पशुओं को पालना, वाणिज्य ( व्यापार आदि) करना, राजसेवा अर्थात् नौकरी आदि करना, तथा और भी ऐसे २ धनमाप्ति के उपाय " जिनके करने से श्रेष्ठ पुरुषोंमें निंदा और अपयश न होय" और धन तथा जीवनकी वृद्धि होय वैसे यत्नों को करे । ऐसा करनेसे मनुष्य श्रेष्ठतापूर्वक दीर्घजीवनका आनन्द प्राप्त करसकता है । यह दूसरी धनकी एषणाका कथन कियागयाहै ॥ ४ ॥
परलोककी एषणामें विवाद ।
अथतृतीयां परलोकैषणामापद्येतसंशयश्चात्रकथं भविष्यामइतश्युतानवेतिकुतः पुनः संशयइतिउच्यते सन्तिो के प्रत्यक्षपराः परोक्षत्वात् पुनर्भवस्यनास्तिक्यमाश्रिताः सन्तिचागमप्रत्ययादेव पुनर्भवमिच्छन्तिश्रुतिभेदाच्च ।
"मातरंरांपितरञ्चैकेमन्यन्तेजन्मकारणम् । स्वभावपरनिर्माणं यदृच्छाञ्चापरे जनाः ॥"
इत्यतः संशयः । किंनुखल्वस्तिपुनर्भवानवेति । तत्रबुद्धिमान्नास्तिक्यबुद्धिजह्यात्वचिकित्साञ्चाकस्मात् प्रत्यक्षह्यल्पमनल्पमप्रत्यक्षमस्तियदागमानुमानयुक्तिभिरुपलभ्यते । यैरेवतावप्रत्यक्षमुपलभ्यतेतान्येवसन्तिचाप्रत्यक्षाणि ॥ ५ ॥
द्विन्द्रियैः
'अब इसके उपरांत तीसरी परलोक एषणाको कहते हैं । सो यहां यह संशय होता है कि इस लोकसे पतित होनेपर अर्थात यह शरीर छोड़ने पर हम फिर कहीं प्रगट होंगे या नहीं, अथवा शरीरत्याग के अनन्तर हम किसी रूपमें रहेंगे या शरीरांद में ही