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. सूत्रस्थान-अ०११: । ज्ञोयःसम्यक् प्रतिपत्तिमान् । नसमैत्रयतुल्यानांमिथ्यावुदि प्रकल्पयेत् । इति ॥२३॥ मतिमान् योग्य वैद्यको चाहिये कि इस प्रकार पहले रोगोंकी परीक्षा करके याद रोग साध्य प्रतीत हों तो उनका यत्न आरंभ करे । जो वैद्य. साध्य और असाध्य रोगोंको अच्छी तरहसे जानताहै जो लक्षणद्वारा रोग जानकर चिकित्सा करताहै जो गुण और सामग्रीयुक्त है वह चिंकित्सासे साध्य रोगीको आरोग्य कर सकता है मैत्रेय ! उसकी चिकित्सामें आपको मिथ्याशंका करना उचित नहीं ॥२२॥२३॥
' ' अध्यायका संक्षिप्तवर्णन। . . । तत्रश्लोकौ । इहौषधंपादगुणा प्रभावोभेषजाश्रयः आत्रेयमैत्रेयमतीमतिद्वैविध्यनिश्चयः ॥ २४ ॥ चतुर्विधविकल्पाश्च व्याधयःस्वस्वलक्षणाः। उक्तामहाचतुष्पादेयेष्वायत्तभिषग्'जितामिति ॥२५॥ · · अंग्नीत्यादि ॥ महाचतुष्पादाध्याय:समाप्तः ॥
इस महाचतुष्पाद अध्यायमें-औषध, पादगुण, और औषधका प्रभाव तथा आत्रेय और मैत्रेयजीका पक्ष प्रतिपक्ष और मतभेद तथा उनका निश्चय और व्याधिक चार भेद, तथा व्याधियें और उनके, लक्षण, कथन किये गयेहैं जिस वैद्यको इस ' महाचतुष्पादका ज्ञान है वह औषधि द्वारा रोगोंको जीत सकताहै ॥२४॥२५॥ .
इति श्रीमहर्षिचरंकप्रणीतायुर्वेदीयसंहितायां पटियालाराज्यान्तर्गतटकसालनिवासिवैद्य-. । - पञ्चानन वैद्यरल पं० रामप्रसादवैद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभाषाटीकायां ।
. .. महाचतुष्पादो 'नाम दशमोऽध्यायः ॥५॥ ... . . एकादशोऽध्यायः। ....
. अथातस्तिषणीयमध्यायव्याख्यास्याम इतिहस्माहभग
वानात्रेयः॥ -- अब हम तिषणीय (तीन.एषणावाले) अध्यायकी व्याख्या. करतेहैं, एसा. आत्रेय भगवान कहनेलगे।..
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