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चरकसंहिता-भा० टी०। अब यहां कहतेहैं कि जब तक पहले लियाहुआ आहार पाचन न होलेवे तक तक उसके ऊपर कोई भारी पदार्थ या पिष्टपदार्थ (मैदा, पिष्टी 'आदि) खीर चावल, चिडुवा, कदापि न खावे । जव अन्न जीर्ण होकर भूख लगी होय तव परिमाणसे भोजन करे ॥२॥
नखानेयोग्य पदार्थ। वल्लूरंशुष्कशाकानिशालूकानिविसानिच । नाभ्यस्येदोरवा- . न्मासंकृशंनैवोपयोजयेत् ॥३॥ कर्चिकांश्चकिलाटांश्चशीकरंगव्यमाहिषे । मत्स्यान्दधिचमाषांश्च यवकांश्चनशीलयेत् ॥ शुष्क मांस, शुष्कशाक, शालूक ( कमलकी डंडी), विस, अनूपादिमांस इन सवको भारी होने के कारण नित्य खानेका अभ्यास न करे और रोगादिसे सूखे जीवका मांस न खाय । छाछसे तथा और तरहसे फटाहुआ दूध, सूअरका मांस, गोमांस, (भैसका मांस ) इनको कभी भी ग्रहण न करे । मछली; दही, उडद, जी; इनको नित्य खानेका अभ्यास न करे ॥ ३ ॥ ४ ॥
सेवन योग्य पदार्थ । पष्टिकाशालिमुद्दांश्चसैन्धवामलकेयवान् । आन्तरिक्षपयःसर्जािङ्गलमधुचाभ्यसेत् ॥ ५॥ तच्चनित्यं प्रयुञ्जीतस्वास्थ्ययेनानुवर्तते ।
अजातानांविकाराणामनुत्पत्तिकरञ्चयत् ॥६॥ सटीक चावल, शाली चावल, मूंग, सेंधानमक, आमले, गेहूं, अगस्त्यो. दयसे शुद्ध आकाशका जल, दूध, घी, जांगल पदार्थ, सहद, इनको नित्य खायाकरे। जो द्रव्य देहकी स्वस्थावस्थाको न विगाडे, और रोगोंको उत्पन्न न करे वह पदार्थ खाना चाहिये ॥५॥६॥
अतऊईशरीरस्यकार्य्यमभ्यञ्जनादिकम्।
स्वस्थवृत्तमाभप्रेत्यगुणतःसंप्रवक्ष्यते ॥ ७॥ अब इसके उपरांत स्वस्थताकी रक्षाके लिये अभ्यंजनादि शरीरके कृत्य और उनके गुणांका कयन करतह ॥ ७ ॥
अंजन लगाना । सोवीरमअनंनित्यंहितमक्ष्णोःप्रयोजयेत् ।
पञ्चरानेटरात्रेयास्त्रावणार्थरसाशनम् ॥ ८॥ • मामिदमिन पाटान्तरम् ।
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