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. सूत्रस्थान-अ०७. . । .. यदि मलमार्ग भारी हों तो मल बढे हुए जानना और मलमार्गोंकेहलकेपनसे मलका क्षय जानना चाहिये । अथवा यों कहिये कि मलमार्गोंसे मल अधिक निकले तो मल बढाहुआ समझे और अत्यन्त कम होनेसे मलकी क्षीणता जाने ॥४१॥
___साध्य रोगकी चिकित्सा करे। तान्दोलिंगरादिश्यव्याधीन्साध्यानुपाचरेत् । व्याधिहेतुप्रतिद्वन्द्वात्राकालौविचारयेत् ॥४२॥ वैद्यको उचित है कि दोषोंके चित्रोंसे रोगको समझकर जो साध्य रोग हैं उनमें रोगले और रोगके कारणसे विपरीत गुणवाली चिकित्सा मात्रा और कालको विचारकर करे ॥ ४२॥
विषमस्वस्थवृत्तानामेतेरोगास्तथापरे।
जायन्तेऽनातुरस्तस्मात्स्वस्थवृत्तपरोभवेत् ॥ ४॥ · जो मनुष्य स्वस्थ अवस्थामें ही अपनी आरोग्यताको रक्षाका यत्न नहीं रखता उसको यह रोग तथा अन्यान्य रोग होतेहैं इसलिये अपने स्वास्थ्यकी रक्षामें सदैव सावधान रहना चाहिये ॥४३॥
दोष दूर करने (शोधन) का समय । . माधवप्रथमेमासिनभस्यप्रथमेपुनः।
सहस्यप्रथमेचैवहारयेद्दोषसञ्चयम् ॥४४॥ . स्निग्धस्विन्नशरीराणामूर्द्धश्चाधश्चबुद्धिमान्। वस्तिकर्मततःकु
-नस्तःकर्मचबुद्धिमान् ॥४५॥ यथाक्रमंयथायोगमतऊईप्रयोजयेत् । रसायनानिसिद्धानिवृष्ययोगांश्चकालवित् ॥ ॥४६॥रोगास्तथानजायन्तेप्रकृतिस्थेषुधातुषु। धातवश्वाभिवद्धन्तेजराचान्त्यमुपैतिच ॥४७॥ विधिरेषविकाराणामनुत्पतौनिदर्शितः। निजानामितरेषान्तुपथगेवोपदिश्यते॥४८॥ बुद्धिमान् मनुष्य चैत्र, श्रावण, मार्गशीर्ष, इन तीन महीनोंमें एक २ वार शरीरको स्नेहन और स्वेदन करके वमन, विरेचन आदिसे शरीरके और नस्य आदिसे मस्तकके दोष निकाले तथा वस्ति कर्म करे । यदि उचित समझे तो नसोंमेंसे रक्तस्त्राव करे। फिर.यथाक्रम शरीरकी सत्ता ठीक होनेपर जैसे उचित हो वैसे रसायन और वृष्य योगोंको समय आदिको जाननेवाला वैद्य प्रयुक्त करे ॥ ४४ ॥ ४५ ॥४६॥ इस प्रकार दोषोंको दूर करनेसे नीरोग मनुष्यके शरीरमें रोग उत्पन्न नहीं होते और