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चरकसंहिता-भा० टी०। होताह अर्थात् जब चक्षु इंद्रियसे मनका संयोग होता तो देखता है. जब अवणेन्द्रियसे संयोग होताहै तव सुनताह । किन्तु एक ही कालमें सव इन्द्रियोंकी प्रवृत्ति नहीं होती और एक कालमें सब गुण ही पाए जाते हैं इसलिये मन एक है अनेक नहीं । जो गुण जिसके मनमें अधिकतासे निरंतर रहताहै उसके अनुसार ही ऋषिलोग उसकी वृत्तिको कथन करतेहे अर्थात् सत्वगुणकी अधिकतासे सतोगुणी, रजोगुणसे रजोगुणी, तमोगुणसे तमोगुणी वृत्ति कही जाती है । मनकी अनुगामिनी होकर इंद्रियं अपने अर्थको ग्रहण करनेमें समर्थ हो सकती है ॥ १-४ ॥
__ इन्द्रियोंके नाम द्रव्य और अधिष्ठान । तत्रचक्षुःश्रोत्रघ्राणरसनस्पर्शनामितिपञ्चेन्द्रियाणि ॥ पञ्चेन्द्रियद्रव्याणिखवायुज्योतिरापोभूरिति । पञ्चेन्द्रियाधिष्ठानान्यक्षिणीकर्णीनासिकेजिह्वात्वक्चेति ॥५॥ चक्षु, श्रवण, घ्राण, रसन, स्पर्श यह पांच इंद्रियें हैं । और तेज, आकाश, पृथ्वी, जल, वायु, यह क्रमसे पांच इंद्रियोंके पांच द्रव्य है । आंख, कान, नासिका, जीभ, त्वचा, यह क्रमसे पांच इंद्रियोंके आधिष्ठान ( रहनेके स्थान )हे ॥ ५ ॥
इन्द्रियोंके विषयादि । पञ्चेन्द्रियार्थाःर्शब्दस्पशरूपरसगन्धाः।
पञ्चेन्द्रियवुद्धयश्चक्षुवुद्धयादिकास्ताः ॥६॥ रूप, शब्द, गंध, रस, स्पर्श, यह क्रमसे पांचों इन्द्रियोंके अर्थ (विषय ) हैं। देखनेकी बुद्धि, सुननेकी बुद्धि, गंधलेनेकी वाई, रसज्ञानकी बाई, स्पर्शकी बुद्धि यह क्रमसे पांच इंद्रियांकी बुद्धि (वोध) हैं ॥ ६ ॥
पुनरिंद्रियेन्द्रियार्थस्वत्त्वात्मसन्निकर्पजाः।
क्षणिकानिश्चयात्मिकाश्चेत्येतत्पञ्चपञ्चकम् ॥ ७॥ इन्द्रियाद्धि यह ( बोध, ज्ञान ) इंद्रिय और उस इन्द्रियका अर्थ (विषय) तया मन और आत्मा इन सबके सनिकर्षसे होती हैं । फिर वह बुद्धि क्षणिका और निथयात्मिका इन भेदासे दो प्रकारकी है । यह इंद्रियपंचकका पंचक कहागया अर्यात् एक २ इन्द्रियका एकएक पंचक होनेसे पांच पंचक कहेगयेह ॥ ७॥
अध्यात्मिकद्रव्यगण । मनोमनोरथोबुद्विरात्माचेत्यध्यात्मद्रव्यगणसंग्रहःशुभाशभप्रवृत्तिनिवृत्तिहतुश्चद्रव्याश्रितकर्मयदुच्यते क्रियेति ॥ ८॥