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चरकसंहिता-भा० टी०।
. दृष्टान्त । तद्यथा-श्वभ्रेसरसिचप्रसिक्तमल्पसुदकम्, नयांस्यन्दमानायांपांशुधानेपांशुमुष्टिप्रकीर्णइति । तथापरेदृश्यन्तेअनुपकरणाश्चापरिचारिकाश्चानात्मवन्तश्चाकुशलैश्चभिपग्भिरनुष्ठिताः समुत्तिष्टमानाः । तथायुक्ताम्रियमाणाश्चापरेयतश्चप्रतिकुर्वन् . सिद्धयतिप्रतिकुर्वनाम्रियतेअप्रतिकुर्वन्ाम्रयतेततश्चिन्त्यतेभेषजमभेपजनाविशिष्टमितिमैत्रेयः ॥३॥ उसको इसतरहसे समझिये कि जैसे एक बडे भारी गढेमें अथवा तालावमें जलकी अंजली डालदेना अथवा किसी वहतीहुई नदी या रेतके वडे भारी ढेर पर एक बालू रेतकी मुट्टी बखेरदेना किसी गणनाम नहीं होती। इसी प्रकार असंख्य प्राणियों के मरणमें एक दो का अच्छा हो जाना भी किस गणनाम है । और देखने में भी आता है कि बहुतसे रोगी योग्य परिचारकके विना, उत्तम औषधादि न होनेपर, खोटे स्वभावके होनेपर, और अयोग्य वैद्यसे अथवा विना ही वैद्यसे आरोग्य होजातेहैं। एंव योग्य चतुष्पादी चिकित्सासे भी अनेक २ प्राणी मरजाते हैं। कोई यत्न न करनसे मरजातह वस, जव यत्न करनेपर भी मरजाते हैं और विना यत्न भी आरोग्य होजातेह ता चिकित्सा करना और न करना एकसा ही प्रतीत होताहै । इस प्रकार मंत्रयजीने कहा ॥३॥
उक्त विषयमं आत्रेयका खण्डन । मिथ्याचिन्त्यतइत्यात्रेयःकिंकारणंयेह्यातुराःपोडशगुणसमुदितेनानेनभेपजेनोपपद्यमानाइत्युक्तंतदनुपपन्ननहिभपजसाध्यानांव्याधीनांभेपजमकारणंभवति। येपुनरातुरा केवलाद्देपजादृतेसमुनिष्टन्तेनतेपांसम्पूर्णभेपजोपपादनायसमुत्थानविशेपोस्तियथाहिपतितंपुरूसमर्थमुत्थानायोत्थापयन्पुरुयोवलमम्योपादध्यात् । साक्षिप्रतरमपरिक्लिष्टएवोनिष्टेत्तद्वत्सम्पूर्णभेपजीपलम्भादानुराधायचातुराः केवलापजादपिनियन्तेनच सर्ववतेभेपजोपपन्नाःसमुनिष्टेरननहिसर्वव्याधयोभवनत्युपायसाध्याः ॥2॥नोपायसाध्यानांव्याधीनामनुपायेन सिन्दिगम्तिनचासाध्यानांव्यार्धानांभेषजसमुदायोस्तिनालं