________________
(१०४) चरकसंहिता-भा० टी०।
. . मूर्ख वैद्यके लक्षण । पाणिचाराद्यथाचक्षुरज्ञानानीतभीतवत् ।
नौर्मारुतवशेवाज्ञोभिषक्चरतिकर्मसु ॥ १४ ॥ __ अन्धा मनुष्य जैसे चलते समय आगेको हाथ मारता है और अति पवनके वेगसे जैसे नाव डगमगातीहै ऐसे ही चिकित्साके समय मूर्ख वैद्य डगमगाताहुआ अंटसँट बल करताहै ॥ १४ ॥
कुत्सित वैद्यका कर्म । यदृच्छयासमापन्नमुत्तायोनियतायुषम् ।
भिषग्मानौनिहन्त्याशुशतान्यनियतायुषाम् ॥ १५॥ : मूर्ख वैद्यके हाथसे यदि कोई दैववश एक पुरुष भी अच्छा होजाय फिर वह उसको दृष्टांतमें रख "मैं ऐसा योग्य वेद्य हूं" यह कहकर वह दुष्ट सैकड़ों मनुष्योंकी आयुको नष्ट करताहै ॥ १५ ॥
वैद्यको प्राणदातृत्व । तस्माच्छास्त्रेऽर्थविज्ञानेप्रवृत्तौकर्मदर्शने। ...
भिषक्चतुष्टयेयुक्तःप्राणाभिसरउच्यते ॥ १६ ॥ इसलिये जिस वैद्यने शास्त्र और उसके मर्मको समझाहो, औषध और औषधके प्रयोगको जाना हो तथा चिकित्साक्रमको अच्छी तरह देखलियाहो वह गुणचतुष्टय युक्त वैद्य प्राणोंको देनेवाला कहा जाता है ॥ १६ ॥
राजयोग्य चिकित्सकके लक्षण । .. हेतौलिङ्गप्रशमनेरोगाणामपुनर्भवे ।
ज्ञानंचतुर्विधंयस्यसराजाहुभिषक्तमः ॥१७॥ जो पैद्य रोगके कारण और लक्षण तथा रोगनाशक उपाय और जिस प्रकार फिर रोग न होय ऐसी स्वास्थ्यरक्षा इन चार प्रकारोंके विषयको जानता है वह राजाओंकी चिकित्सा करने योग्य वैद्यराज होता है ॥ १७ ॥
वैद्यका कर्तव्यकम् । शस्त्रंशास्त्राणिसलिलंगुणदोषप्रवृत्तये। : . पात्रापेक्षीण्यतःप्रज्ञांचिकित्सार्थविशोधयेत् ॥ १८॥ ... . शस्त्र, शास्त्र, जल, यह गुण और दोषमें पात्रकी अपेक्षा करतेहैं अर्थात् शस्त्र योग्य शूरवीरके हाथमें होनेसे गुणदायक होताहै और नालायक दुष्ट आदिके