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चरकसंहिता-भा० टी० योनिसे विना अयोनिमथुन न करें ।चित्य, चत्वर (देवालय मंदिर आदि),चौराहा उपवन, श्मशान, वधस्थान, जल, औषधीदनेक स्थान, द्विजस्थान, गुरुस्थान, देवमंदिर, इन स्थानाम भी वांगमन न करे । दोनों संध्याआम एकादशी आदि निषिद्ध तिथिम,अपवित्र अवस्था में,औषधी खाकर,विना निश्चय किये,विना कामेच्छा प्रगटहुए, भूखे, वहुत भोजन करके विषमरीतिसे,मलमूत्रके वेगमें, थकाहुआ, व्यायाम करके, व्रत करके, आलस्प युक्त भी मैथुन न करे । एकांत स्थानके विना भी स्त्रीसंग न करे ।। २६ ।।
अध्ययनकालके नियम । नसतोनगुरून्परिवदेत् । नाशुचिरभिचारकर्मचैत्यपूज्यपूजाध्ययनमभिनिवर्तयेत्। नविद्युत्स्वनातवीपुनाभ्युदितासुदिक्षु नामिसंप्यूवेनभूमिकस्पेनमहोत्सवेनोल्कापातेनमहामहोपगमनेनष्टचन्द्रायांतिथौनसन्ध्ययोर्नसुखान्द्रो वपतितंनातिमात्र नतान्तनविस्वरनानवस्थितपदंनातिद्रुतनविलम्बितंनातिक्लीवनात्युच्चै तिनीचैः स्वरैरध्ययनमभ्यसेत् । नातिसमयंद्रुह्यात् । ननियमभिन्द्यात् ॥ २७॥ श्रेष्ठ महात्माओंकी और गुरुजनोंकी निन्दा न करे । विना शुद्ध हुए मंत्र तंत्र, देवमंदिर पीपल आदिका पूजन, पृज्योंका पूजन, विद्याध्ययन, न करे । अकाल विद्युत्रात होनेपर, दिग्दाह होनेपर भूकंप होनेपर, बड़े उत्साहमें, उल्कापातके समय, सूर्य चंद्र ग्रहण में, अमावस्याको, दोनों संध्याआम, ऐसे ही गुरुमुखसे सिवाय, अत्यंत मात्रासे, बहुत जोरसे, खराव स्वरसे, पदोंको तोड फोड कर बहुत जल्दी २, बहुत देरम, बहुत दुर्वलताले,वहुत ऊंचे स्वरसे, वहुत नीचे स्वरसे, अध्य चन न करे । पढने समयको व्यर्थ न खोवे । पढनेक नियमको न विगाडे॥२७॥
अन्य नियम । न नक्तंनादेशेचरेत् । नसन्ध्यास्वभ्यवहाराध्ययनस्त्रीस्वप्नसेवी स्यात् । नवालवृद्धलुब्धसूर्खक्लिप्टक्लीवैःसहसख्यं कुर्यात् । न मंबंद्युतवेश्याप्रसङ्गासचिस्यात्ानगुह्यविवृणुयात् निकश्चिदवजानीयात् । नाहमानीस्यात् । नदक्षोनादाक्षिणानासयको नदक्षिणान्परिवदेत् । नगवांदण्डमुद्यच्छेत् । नवृद्दाननगु