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सूत्रस्थान-अ०.८..
(९९) . रून्नगणान्ननृपानवाधिक्षिपेत्नचातिब्रूयात् ॥ नबान्धवानुर-- . तकृच्छाद्वितीयगुह्यज्ञानबहिःकुर्यात् ॥ २८ ॥
रात्रिके समय और खराव स्थानमें न फिरे । संध्याके समय भोजन, अध्ययन मैथुन, और शयन, न करे । बालक,अतिवृद्ध,लोभी, मूर्ख, रोगी, और नपुंसकोंसे मित्रता न करे। मद्यपान,जूआ और वेश्याओंमें कभी रुचि न करे।घरकी गुप्त बातें किसीसे न कहे।किसीका भी अपमान न करे।अहंकार (मैं वडा हूं वा वडा गुणी हूं) न करे ! चतुराई रहित; सूम, तथा किसीको दोष लगानेवाला न होवे । ब्राह्मण आदिकोंकी निंदा न करे । गौऑपर डंडा न चलावे । वृद्धपुरुषों, गुरुजनों, बहुत दलवालों तथा राजाओंकी निंदा आदि न करे । न इनके सामने बहुत बोले । अपने वांधवोंको अपने प्रेमियोंको आपत्तिमें सहायता करनेवालोंको, अपने रहस्य जाननेवालोंको, न छोडै ॥ २८॥
विशेष उपयोगी नियम। नाधीरोनात्युच्छ्रितसत्त्वःस्यात्। नाभृतभृत्योनविश्रब्धास्वजनोनैक सुखी । नदुःखशीलाचारोपचारोनसर्वविशम्भी ।नसवाभिशंकी। नसर्वकालविचारी ॥ नकार्यकालमातपातयेत्। नापरीक्षितमाभनिविशेत् । नेन्द्रियवशगःस्यात् ॥ २९ ॥ धैर्यरहित और बडा सात्त्विक न वनै। नौकरोंकी नौकरी न रक्खे । आदमियोंसे विश्वासरहित भी न वने । कुटुंबके विना अकेला ही मुख न भोगे। और दूसरोंकों दुःख मिलनेवाला आचरण न करै । सभीका विश्वास भी न करे । प्रत्येक मनुष्यके झूठा होनेका भ्रम भी न करे । सदा सोचता भी न रहे । कामके समयको व्यर्थ नष्ट न करै । विना जाने कार्यमें प्रवेश न करे । इंद्रियोंके वशमें न होजाय ॥ २९ ॥
नचञ्चलंमनोभ्रामयेत् । नबुद्धीन्द्रियाणामतिभारमादध्यात्।। - नचातिदीर्घसूत्रीस्यात् । नक्रोधहर्षावनुविदध्यात् । नशोकमतुविशेत् । नसिद्धावीत्सुक्यंगच्छेन्नासिद्धौदैन्यसाप्रकृतिमभीक्ष्णंस्मरेत् । हेतुप्रभावनिश्चितःस्यात् । हेत्वारंभानित्य । नकतमित्याश्वसेत् ॥ नवीर्यजह्यात् । नापवादमनुस्मरेत् ॥३०॥ मन स्वयं ही चंचल होताहै इसको और भी भ्रमित न करे अर्थात मनको टिकात् कर रख । बुद्धि और इंद्रियोंपर बहुत भार न दे अर्थात् जिससे रोग होजाय इतना काम न लेय । कामको वहुत देरमै करनेवाला न होय । क्रोध और हर्षाको बढने न