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चरकसंहिता-मा० टी०। वडी देर तक न बैठे । सांप सिंहादि, और सींगवाले, जविकि पास न जाय, पूर्वकी वायु, मूर्यकी धूप, हिम, बहुत वेगवाली पवन इनको त्यागदेवे । कलह न छेडे । दावानल आदि अनिके समीप न जायं । उच्छिष्ट होकर या शय्या आदिके नीचे रख आग्नि न सके । जबतक थकावट दूर होकर पसीना न सूखजाय तबतक स्नान न करे । नंगा होकर न न्हावे । जिस कपडेसे स्नान कियाहो उसते मस्तकादि उत्तम अंगको न पोंछे । केशांके अग्रभागको पकडकर न झटके। जिस कपडेसे शरीरं पोछा हो या स्नान किया हो उस गीले वस्त्रको न पहिरे । रत्न, घृत, पूज्य और मंगलवस्तुओका स्पर्श करके प्रसन्न मन हो घरसे निकले । पूज्य और मंगल वस्तुओंको बांई ओर करके न जाय । ऐसेही अपूज्य और अमं. गलको दाहनी ओर करके न जाय ॥ २२ ॥
भोजन करनेके नियम । नारत्नपाणि स्नातोनोपहतवासानाऽजपित्वानाहुत्वादेवताभ्योऽनारूप्यपितृभ्योनाऽदत्त्वा गुरुभ्योनातिथिभ्योनोपाधितेभ्योनापुण्यगन्धोनामालीनाप्रक्षालितपाणिपादवदनानाऽशु
मुखोनोदङ्मुखीनविमनाभक्ताशिष्टाशुचिक्षुधितपरिचरोनापात्रीप्वमेध्यासुनादेशेनाऽकालेनाकीर्णेनाऽदत्त्वायमग्नयेनाप्रोक्षितंप्रोक्षणोदकैनमन्त्रैरनभिमान्त्रितनकुत्सयन्नकुत्सितंनप्रतिकूलोपहितमन्नमादीतानपऍपितमन्यत्रमांसहरितशुष्कशाकफलभक्ष्येभ्यः ॥२३॥ हायाम रलको धारण किये विना, न्हाये विना, मैले तथा फटे कपडे पहनकर, विना जपकिंय, हवन किये बिना, देवताओंको अर्पण किये बिना, पितृजनी, गुरुजनों और अतिथियोंको दिये विना, अपने आश्रित पुरुषांको दिये विना, पवित्रं चन्दन गंध आदि धारण किये बिना, माला पहने विना, हाय, पांव, मुख धोये विना अशुद्ध मुखो. उत्तरको मुख करके भोजन न करे । और अपमानित,अभक्त, दुष्ट, अपवित्र, और भूख नीकरके पास रहते हुए, अशुद्ध पात्र में, निंदित स्थानमें, बिना समय, बहुत मनुप्नाम अकेले, अग्निमें आहुति डाले विना, प्रोक्षणोदकसे प्रोक्षण किये बिना, मंत्रांसे अभिमंत्रित किये बिना, भोजनकी निंदा करते हुए, निंदित पदायोंको, शके हाथसे दियेको ऐस भाजनका न करे । और मांस, हरितपक्षी, ससंशाक, फलोग और पेडा आदि मिठाईस सिवाय वासी पदार्थ न साय॥२३॥