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चरकसंहिता - भा० टी० 1
नचस्याद्गृध्रसीवाताः पादयोःस्फुटनंनच । नशिरास्नायुसङ्कोचः पादाभ्यङ्गेनपादयोः ॥ ८६ ॥
और पैरोंका - खरदरापन, सूखापन रूखापन, थकावट, पैरोंका सोजाना, यह सब पैपर तेल मर्दनसे शीघ्र शांत होते हैं और पैरोंमें सुकुमारता वल, दृढ़ता यह होजाते हैं । दृष्टेि प्रसन्न होती है वायु शांत होजाती है । और पादाभ्यंग करनेवाले के गृती आदि वायुके रोग, परोंका फटना, शिरा और स्नायुओंका संकोच यह कभी नहीं होते ॥ ८४ ॥ ८५ ॥ ८६ ॥
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स्नान के महाफल | दौर्गन्ध्यंगौरवतन्द्रां कण्डूमलमरोचकम् । स्वेदंवीभत्सतांहन्तिशरीरपरिमार्जनम् ॥ ८७ ॥ पवित्रंवृष्यमायुष्यं श्रमस्वेदमलापहम् । शरीरवलसन्धानंस्नानमोजस्करं परम् ॥ ८८ ॥ शरीरको स्पंज या गीले कपडेसे अथवा उवटनसे मर्दन करे तो शरीरकी दुर्गंध, भारीपन, तंद्रा, खुजली, मैल, अरुचि, पसीना, वीभत्सता यह सब दूर होते हैं ॥ ८७ ॥ स्नान करना - पवित्रताकारक, वृष्य, आयुवर्द्धक, श्रमनाशक, स्वेदना३. मलनाशक, बलकारक और तेजको करनेवाला है ॥ ८८ ॥
स्वच्छवस्त्र परिधान के फल ।
काम्यंयशस्यमायुष्यमलक्ष्मीन्न प्रहर्षणम् ।
श्रीमत्पारिषदंशस्तंनिर्मलाम्बरधारणम् ॥ ८९ ॥
निर्मल वस्त्रोंको धारण करनेसे -शोभा, यश, आयु, लक्ष्मी, आनंद, और सभ्यता ती तथा प्रशंसा होता है ॥ ८९ ॥
सुगन्धि पुष्पाका धारण ।
वृप्यंसौगन्ध्यमायुष्यं काम्यं पुष्टिवलप्रदम् ।
सौमनस्यमलक्ष्मीप्तं गन्धमाल्यनिपेवणम् ॥ ९० ॥
चंदन और सुगंधित फूल माला धारण करना · वृष्यता, सुगंधि, आयु, सुंदरता, पृष्टि और वल को बढाता । तथा अलक्ष्मीका नाश करता है ॥ ९० ॥
रत्नयुक्त भूषणधारणकरनेका फल |
धन्यंमङ्गल्यमायुष्यंश्रीमद्वयसन सूदनम् । हर्पणकाम्य मोजस्य रत्नाभरणधारणम् ॥ ९१ ॥
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