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सुत्रस्थान::अ०.५..
प्यासके रोकनमें उपद्रव ।। कण्ठास्यशोषोबाधियश्रमःश्वासोहदिव्यथा ।
पिपासानिग्रहात्तत्रशीततर्पणमिष्यते ॥ १९॥ प्यासका वेग रोकनेसे कंठ और मुखका सूखना,कानोंसे न सुनना,श्रम श्वास हृदयमें व्यथा, यह उपद्रव होतेहैं । (यल ) इसमें शीतल और तर्पण (दूध शर्वव आदि पिलाना) हित है ॥ १९ ॥
आँसू रोकनेमें उपद्रव और उपाय। . प्रतिश्यायोऽक्षिरोगश्चहृद्रोगश्चारुचिर्भमः । - बाष्पनिग्रहणात्तत्रस्वप्नोमद्यप्रियाःकथाः ॥ २०॥ __ आंसुओंका वेग रोकनेसें प्रतिश्याय, नेत्ररोग, हृद्रोग, अरुचि,भ्रम, यह उपद्रम होतेहैं (यल) इसमें सोना मद्यपीना, मीठी बातें सुनना हितकारक हैं ॥ २० ॥
निद्रारोकनेमें उपद्रव और उपाय । जृम्भाङ्गमर्दस्तन्द्राचशिरोरोगाक्षिगौरवम् ।
निद्राविधारणात्तत्रस्वप्नःसंवाहनानिच ॥ २१॥ निद्राका वेग रोकनेसे-जंभाई, अंगमर्द ( अंगडाई),तंद्रा, मस्तक और नेत्रोंका भारी प्रतीत होना यह उपद्रव होतेहैं । (यल) इसमें आनंदसे सोना,शरीरको धीरेर दबाना, या पाँवोंको हाथोंसे मलना यह हित है ॥ २१॥
___ श्वासरोकनेमें उपद्रव और उपाय । गुल्महृद्रोगसंमोहाःश्रमनिश्वासधारणात् ।
जायन्तेतत्रविश्रामोवातनाश्चक्रियाहिताः ॥ २२ ॥ परिश्रमका श्वास रोकनेसे-गुल्म, हृदयमें रोग और मोह होताहै। (यल) विश्राम करना और वातनाशक क्रिया यह सब हित है ॥ २२॥
वेगोंको कदापि न रोके। वेगनिग्रहजारोगायएतेपरिकीर्तिताः।
इच्छंस्तेषामनुत्पत्तिवेगानेतान्नधारयेत् ॥ २३॥ ....यह वेगोंको रोकनेसे जो रोग होतेहैं. उन रोगोंके उत्पन्न न होने देनेकी इच्छा बाला मनुष्य इन वेगोंको कभी न रोके ॥ २३॥