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सूत्रस्थानं - अ० ७:
म रोकने में चिकित्सा |
स्वेदाभ्यङ्गावगाहाश्चवर्त्तयोवस्तिकर्म्मच । हितं प्रतिहते वर्च
स्वन्नपानं प्रमाथिच ॥ ७ ॥
( यत्न ) मलके रुकने में स्वेदन, मालिश, गरमजल में बैठना, तीन प्रकारकी वर्ती, वस्तिकर्म, और वायुको अनुलोम करनेवाले अन्नपान, इनका सेवन करे ॥ ७ ॥ वीर्यके वेगके रोकने में उपद्रव और यत्न ।
मेद्रेवृषणयोः शूलमङ्गमद्दहृदिव्यथा । भवेत्प्रतिहतेशुक्रे विवर्द्धमूत्रमेवच ॥ ८ ॥ तत्राभ्यङ्गावगाहाश्चमदिराचरणायुधाः । शालिः पयोनिरूहाञ्चशस्तमैथुनमेवच ॥ ९॥
रेत (वीर्य) के आये हुए वेगको रोकने से- लिंग और पोतोंमें पीडा अंगोंका टूटना, हृदयमें व्यर्थ, और मूत्रका रुकना यह उपद्रव होते हैं। (यत्न ) मालिश, अवगाहन, मद्यपान, मुरंगेका मांस, चावल, दूध, निरूहनवस्ती, मैथुन यह वीके वेग रोकने के उपद्रवोंको शांत करते हैं ॥ ८ ॥ ९॥
अधोवायुके रोकने में उपद्रव ।
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वातमूत्रपुरीषाणांसङ्गाध्मानकुमोरुजा जठरेवातजाश्चान्येरोगाः स्युर्वातनिग्रहात् ॥ १० ॥
अधोवायुका वेग रोकने से - वात, मूत्र, मल, इनका रुकना तथा अफारा आलस्य, शूल, पेटमें दर्द, और वायुके रोग उत्पन्न होते हैं ॥ १० ॥
उपाय ।
स्नेहस्वेदविधिस्तत्रवर्त्तयोभोजनानिच ।
: पानानिवस्तयश्चैवशस्तंवातानुलोमनम् ॥ ११ ॥
अधोवायु के वेग रोकने के विकारशांतिके लिये-स्नेहन, स्वेदन, त्रिविधवर्तीका चूमपान, वातका अनुलोमन करनेवाले अन्न पान और वस्तिकर्म करना हित है११॥ मन रोकने से रोग और उनका उपाय ।
कण्डूकोठाऽरुचिव्यङ्गशोथ पाण्ड्वामयज्वराः । कुष्ठहृल्लास वीसपश्छिर्दिनिग्रहजागदाः ॥ १२ ॥ भुक्त्वाप्रच्छर्दनंधूमोलंघनं रक्तमोक्षणम् । रूक्षान्नपानंव्यायामोविरेकश्चात्रशस्यते ॥ १३॥