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सूत्रस्थान-अ०६... आदानकालमें सूर्य अपनी तीक्ष्ण किरणोंसे जगत्के रसको खींचताहै । संपूर्ण वायु तीव्र और रूखा होनेसे चिकनाईको शोषण करताहै इसप्रकार सूर्य और वायु क्रमसे शिाशेर, वसंत, प्रष्मि ऋतुओंमें रूक्षताको करतेहुए कडुए, कषैले, और चपरे रसप्रधान द्रव्योंको प्रगट करतेहैं । इसलिये आदानकालमें रूक्षतासे मनुष्योंको दुर्बल करते हैं ॥५॥ :. वर्षाशरद्धेमन्तेषुतुदक्षिणाभिमुखेऽकेंकालमार्गेमेघवातवर्षाभिः
हतप्रतापेशशिनिचाव्याहतवलेमाहेन्द्रसलिलप्रशान्तसन्तापे जगत्यरूक्षारसाः प्रवर्द्धन्तेऽम्ललवणमधुरायथाक्रमंतत्रबलमुपचीयन्तेनृणामिति ॥६॥ भवतिचात्र ॥ आदावन्तेचदौर बैल्यविसर्गादानयोर्नृणाम् । मध्ये मध्यवरन्त्वन्तेश्रेष्ठमग्रेचनिदिशेत् ॥ ७॥ वर्षा, शरद और हेमंत ऋतुमें सूर्य दक्षिणमें होनेसे सूर्यके प्रतापको काल, मार्ग, मेघ, वायु, वर्षा, दवा रखतेहैं । तब चंद्रमाका प्रताप बलवान रहताहै । वर्षाके जलसे जगत्का संताप दवजाताहै इसी कारण संपूर्ण चिकने रसोंवाले द्रव्योंकी सामग्री वढतीहै । और अम्ल, लवण, मधुर रस यथाक्रम बढकर मनुष्योंके वलको बढातेहैं ॥ ६ ॥ विसर्गकालके प्रथम ( वर्षाऋतुमें) और आदानकालके अंतं (ग्रीष्म ) में मनुष्य आदिकोंम निर्वलता होतीहै । ऐसे ही आदान और विसर्गके मध्य(शरद, वसंत) में मध्यवल होताहै । और विसर्गके अंत (हेमंत ) में आर आदानके आदि (शिशिर ) में सव मनुष्यादिकोंमें पूर्ण बल होताहै ॥ ७ ॥ ..
शीतकालका वर्णन। ... . शीतेशीतानिलस्पर्शसंरुद्धोबलिनांबली । पक्काभवतिहेमन्ते ।
मात्राद्रव्यगुरुक्षमः ॥ ८ ॥ सयदानन्धनंयुक्तलभतेदेहज तदा । रसंहिनस्त्यतोवायुःशीतःशीते प्रकुप्यति ॥ ९॥ . शीतकालमें ठंढे पवनके लगनेसे शरीरके भीतर रुककर बलवान् मनुष्योंकी जठ, राग्नि वलवाली होतीहै । इसीलिये शीतकालमें जठराग्नि भारी मात्रा और गुरुभोजनको पाचन करसकती है। यदि चैतन्य जठराग्निको इंधन (आहार ) न मिले तो वह देहके रसको फूंकदेतीहै । रसके सूखनसे शरीर रूखा होजाताहै इसलिये रूक्ष, गुणयुक्त शीतल शारीरिक वायु शीतकालमें कुपित होतीहै ।। ८ ॥९॥