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सूत्रस्थान-अ० ६.. अब अध्यायका उपसंहार करतेहैं । इस अध्यायमें मात्रा, द्रव्य, और मात्राको लेकर गुरु द्रव्य और हलके द्रव्य, निंदनीय द्रव्य, द्रमोंका निंदित अभ्यास और जिनको गुरुपदार्थ पच सकतेहैं इनका वर्णन कियाहै । इसके उपरान्त क्रमसे अञ्जन चूमबत्ती, तीन प्रकारको वत्तियें धूमपानके गुण, समय; प्रमाण, धूमपानके दोष, उनका यत्न, जिनको धूम न पीना चाहिये, जैसे पीना जैसे धूमपानकी नली बनाना, जिन चीजोंसे पीना यह सव वर्णन कियाहै तथा नस्य कर्मके गुण, जो नस्य जिस प्रकार जव लेना, दतौनकी विधि, गुण, वृक्ष,कवल, तेल मुखमें धारण करनेके गुण, मस्तकमें तेल लगानेका गुण,कानमें तेल डालनेका गुण,शरीरपर तेल मलनेका गुण, पैरों में तेल मलनेका गुण, देहको उवटने यागीले वस्त्रसे मांजनेका गुण, स्नान,शुद्धवस्त्रधारण,सुगंधित चन्दनादिधारण,रत्नाभरणधारण,शौच,क्षौरकर्म,जूता पहनना, छत्र, दंडा, इन सवको धारण करनेके गुण इस मात्राश्रितीय अध्याय वर्णन कियह ॥ ९८॥ १०४ ॥ इति श्रीमहर्पिचरकप्रणीतायुर्वेदीयसंहितायां पटियालाराज्यान्तर्वतिटकसालनिवासिवैद्यपञ्चानन वैद्यरत्न पं० रामप्रसादवैद्योपाध्यायविरचितप्रसादन्याख्यभाषाटोकायां
मात्राश्रितीयो नाम पञ्चमोऽध्यायः॥५॥ .
षष्टोऽध्यायः।
-ocesअथातःतस्याशितीयमध्यायव्याख्यास्यामः । इतिहस्माह भगवानात्रेयः॥ अब हम तस्याशितीय (जो पहले भोजनसम्बन्धी कह चुके हैं उसीके विषयमें) अध्यायकी व्याख्या करतेहैं । ऐसा भगवान् आत्रेय कहने लगे।
मात्रा और ऋतुके अनुकूल भोजनसे लाभ । तस्याशितीयाध्याहाराबलंवर्णश्चवर्द्धते।
तस्यतुसात्म्यविदितंचेष्टाहारख्यपाश्रयम् ॥१॥ . ठीक मात्रासे उचित रीतिपर कियाहुआ भोजन वल और वर्णको बढाता है परन्तु जिस ऋतुमें जैसा आहार और विहार शरीरके अनुकूल हो वैसा..करनाही चल और वर्णकी वृद्धि करताहै ॥ १॥