________________
. सूत्रस्थान-अ०.५.
। त्यमर्द्धसौहित्यवागुरूणामुपादश्यते । लघूनामपिचनातिसौ
हित्यमग्नेर्युक्त्यर्थम् । मात्रावद्धयशनमशितमनुपहत्यप्रकृति बलवर्णसुखायुषायोजयत्युपयोक्तारमनुष्यमिति ॥१॥
मनुष्यको उचित मात्रासे भोजन करना चाहिये वह मात्रा अर्थात् आहारका 'परिमाण मनुष्यकी जठराग्निके बलके आधीन है। जो भोजन कियाहुआ मनुष्यके स्वभारमें कुछ फर्क न लावे और ठीक समयपर पचजावे उस मनुष्यके लिये वही परिमित (ठीक मात्रा) भोजन है । शालीचावल, साठी चावल,मूंग, लवा तित्तर, कृष्णसार, शशा, शरभ, शावर यह स्वभावसे ही हलके होतेहैं। परंतु फिर भी मात्रासे
अधिक सेवन करना उचित नहीं । इसीतरह पिष्टपदार्थ, खांड, गुड आदि, दूधका विकार, खोआ, रंबडी आदि,उडद और अनूपसंचारी जीवोंका मांस यह स्वभावसे ही गुरु (भारी) हैं। यह भी जितने ठीक पचसके उतनी मात्रासे सेवन करने चाहिये।
यहां पर जो इन द्रव्योंकी गुरुता, लघुता, कहींहै वह निष्प्रयोजन नहीं । क्योंकि "जितने हलके पदार्थ हैं उनमें वायु और अग्निका गुण अधिक होताहै । इसप्रकार
गुरुपदार्थोंमें पृथ्वीका गुण और सोमगुण आधिक होता है । इसी कारणसे हलके पदार्थ ठीक मात्रासे खाये हुए अपने गुणके संवबसे स्वभावसे ही अग्निदीपन और अल्पदोष होतेहैं । और भारी पदार्थ स्वभावसे ही आनके मन्द करनेवाले होते? इसलिये अधिक मात्रासे उपयोग कियेहुए दोषोंको प्रवल करतेहैं। और विना व्यायाम ( कसरत) और जठरानिकी ताकतसे गुरु (भारी) भोजन करना उचित नहीं । तात्पर्य यह हुआ कि हलके पदार्थ यथेच्छ पेट भरकर खाय परंतु भारी पदार्थ बहुत पेट भरकर न खावे किंतु आहारकी मात्रा जठराग्निके वल पर निर्भर है द्रव्यके हलकेभारीपन पर नहीं। असलमें सव पदार्थोंके खानेका क्रम यह है कि जितने हलके पदार्थ हैं उनको तीन भाग पेटभरकर खाना हित है।और जितने भारी हैं उनको आधा पेंट भर कर खाना हित है और हलका पदार्थ भी अधिक पेट भरकर खाना-जठराग्निको मंद करताहै । ठीक मात्रासे किया भोजन प्रकृति (स्व. भावः) को नहीं बिगाडता इसलिये ठीकमात्रासे कियाहुआ भोजन मनुष्योंको बल, वर्ण, सुख, आयु इनको देनेवाला होताहै ॥१॥
भोजन करने पर तुरत भोजन निषेध । भवन्तिचात्र ॥ गुरुपिष्टमयंतस्मात्तण्डुलानपृथुकानपि! .. - नंजातुभुक्तवान्खादेन्मात्रांखादेबुभुक्षितः ॥ २॥