________________
. सूत्रस्थान-अ०५. अत्यंत धूमपानसे यदि देहके छिद्रोंसे रुधिर निकलनेलगे तो अणुतैलका शरीरपर मालिश करावे। परन्तु वर्षा, शरद, वसंत इन ऋतुओंमें अणुतल न लगावे और मेघाच्छन्न आकाशके दिन भी अणुतल न लगावे ॥५०॥
अणुतैलकी नस्यके गुण । नस्यकर्मयथाकालंयोयथोक्तनिषेवते । नतस्यचक्षुर्नप्राणन श्रोत्रमुपहन्यते ॥ ५१॥ नस्युःश्वेतानकपिला केशा श्मश्चणि वापुनः । नचकेशा प्रलुठ्यन्तेवद्धन्तेचविशेषतः॥ ५२ ॥ मन्यास्तम्भःशिरःशूलमर्दितंहनुसंग्रहः । पानसा वभेदौच .. शिरःकम्पश्चशाम्यति ॥५३. ॥ शिराःशिरःकपालानांसन्धयः स्नायुकण्डराः । नावनप्रणिताश्चास्यलभन्तेऽभ्यधिकंबलम्, ॥ ५४॥ मुखंप्रसन्नोपचितस्वर स्निग्धःस्थिरोमहान्। सर्वे-- न्द्रियाणांवैमल्यंबलंभवतिचाधिकम् ॥ ५५॥ नचास्यरोगाः सहसाप्रभवन्त्यूर्द्धजत्रुजाः।जीयंतश्चोत्तमाङ्गेचजरानलभते वलम् ॥ ५६ ॥ जो मनुष्य शास्त्रोक्त रीतिसे विधिपूर्वक ठीक समय नसवार लेता है उसके नेत्र, नासिका और कानोंकी शक्ति कभी नष्ट नहीं होती। और केश, डाढी, मूंछ सफेद तथा पाले नहीं होते और बाल बढते हैं।कभी उखडकर नहीं गिरते । उस मनुष्यके मन्यास्तंभ, शिरकी पीडा, अदितवायु, हनुस्तंभ, पीनस, अधसिरा, शिरका कांपना यह सब रोग शांत होते हैं। और उचित नस्यके फलसे मनुष्यके मस्तक और कपाल:की शिरा,संधि, स्नायु, कंडरा,तृप्त हो बलवान होती है मुख प्रसन्न और शुद्ध रहता, है। आवाज तर और बलवान् होजाती है।सब इंद्रियें निर्मल और अधिक बलवाली. होतीहैं।और गलेसे ऊपर होनेवाले रोग अपना प्रभाव नहीं दिखाते बुढापां आनेपर भी इसके बाल सफेद नहीं होते ॥ ५१ ॥ ५२ ॥५३ ॥५४॥ ५५ ॥५६ ॥
अणुतैल विधि । चन्दनागुरुणीपत्रंदात्विक्मधुकंबलाम् । प्रपौण्डरीकंसूक्ष्मै- . लांविडङ्गबिल्वमुत्पलम ॥ ५७ ॥ ह्रीवेरमभयंवन्यत्वङ्मस्तं सारवां स्थिराम् । सुरावंपृश्निपर्णीञ्चजीवन्तीञ्चशतावरीम्॥ . ॥ ५८ ॥ हरेणुंबृहतींव्याघ्रीसुरभीपाकेशरम् । विपाचयेच्छत